Unmadini Shakti : उन्मादिनी शक्ति : लाश पर बैठ कर खाया एक सप्ताह तक मछली भात


“लाश पर बैठ एक सप्ताह खाया मछली-भात”

 प्रतिनिधि, पटना सिटीः भतीजी और भौजाई की हत्या कर लाश को घर में दफनाने के बाद ननदों ने जमकर एक सप्ताह तक उसी घर में बैठकर मछली-भात खाया। ताकि लोगों को शक न हो कि मां-बेटी की हत्या कर दी गई है। इतना ही नहीं लाश पर बैठकर खाना खा रहे ननदें पड़ोसियों से भी घुल-मिलकर बातें करती रहीं। पड़ोसियों की मानें तो गुलछर्रे उड़ाने का यह सिलसिला सप्ताह भर चला। इसके बाद मां-बेटी के लापता होने को लेकर पड़ोसियों में काना-फुसी होने लगी तो आरोपित ननदें मां-बाप के साथ आवश्यक्ता की सामग्री लेकर फरार हो गयीं। जमीन में दफनाये लाश पर 10 दिनों तक भोजन करने वाला यह बंगाली परिवार खजुरबन्ना का है, जिसने अपनी विधवा भौजाई और भतीजी की हत्या अय्ययाशी तथा संपत्ति हड़पने के लिए कर दी थी। इस घटना के उद्भेदन के बाद पुलिस फरार भगत तथा उसके एक साथी को अब तक नहीं ढूढ़ सकी जबकि अनुसंधानक लक्ष्मण महतो का दावा है कि दोनों फरार अभियुक्त जल्द ही पकड़े जायेंगे। मालूम हो कि 25 अप्रैल को पुलिस ने खजूरबन्ना मोहल्ले में मां-बेटी का दुर्गंधयुक्त शव बरामद किया था। एक सप्ताह पूर्व पुलिस ने लाश पर बैठकर खाने वाली आरोपित तीन ननदों तथा सास-ससुर को जमशेदपुर में गिरफ्तार किया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि दो दशक पूर्व उस घर की रौनक पूरे क्षेत्र में जानी जाती थी। घर के मालिक राणा चैधरी की मौत चार वर्ष पूर्व बीमारी के क्रम में हो गयी। मोहल्लेवासी बताते हैं कि दुर्गापूजा में उस घर में दसों दिन बड़े ही वैधानिक ढंग से पूजा-पाठ होती थी। लोगों में इस बात का आश्चर्य है कि भगवान में भक्ति रखने वाले परिवार की यह दुर्दशा होगी किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। (15 जून 2007 सोमवार के दैनिक जागरण समाचार पत्र में प्रकाशित खबर)

उन्मादिनी शक्ति

यह जो मैंने समाचार पत्र का अंश ज्यों का त्यों दिया है, वह दैनिक जागरण समाचार पत्र का हिस्सा है, जो 15 जून 2007 दिन सोमवार को प्रकाशित हुआ था। यह बड़ी ही सोचने की बात है कि आखिर उस परिवार की ऐसी दुर्गति क्यों हुई? इस समाचार को मैंने अपने इस पत्रिका में इसलिए स्थान दिया कि आज अधिकांश घर लगभग 90% लोग इस तरह की समस्या से पीड़ित हैं।

समाचार का एक अंश देखिए - मोहल्लेवाले बताते हैं कि दुर्गापूजा में उस घर में दसों दिन बड़े ही वैधानिक ढंग से पूजा-पाठ होती थी। लोगों में इस बात का आश्चर्य है कि भगवान में भक्ति रखने वाले परिवार की यह दुर्दशा होगी, किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था।

बस यहीं पर समस्त मोहल्लेवासी एवं पत्रकार बंधुओं इत्यादि का सर चकरा गया, इस प्रश्न का जवाब ही नहीं सुझा कि आखिर क्यों हुआ ऐसा? इस सवाल का जवाब कोई परम आध्यात्मिक व्यक्ति, क्ति उपासक साथ ही तत्व चिंतक दे सकता है। मैं अपनी तुच्छ बुद्धि से इस पर प्रकाश डालने की कोशिश कर रहा हूँ।

शक्ति बहुत ही उन्मादिनी होती है। उसे संभालना हर किसी के बस की बात नहीं। शक्ति की इसी अति प्रचण्डता को देखते हुए परम शिव ने शक्ति के प्रत्येक अवतारों के साथ गणपति, भैरव को उनके स्वरूप के अनुसार लगा दिया और स्वयं भी विभिन्न स्वरूप धारण कर उनके नियंत्रणकर्ता के रूप में स्थापित हो गए। जैसे - दुर्गा के साथ नीलकंठेष्वर, महाकाली के साथ महाकाल, दक्षिणकाली के साथ अघोर शिव, बगलामुखी के साथ त्र्यम्बकेश्वर इत्यादि।

यह परिवार बंगाली था। शक्ति उपासना को अत्यधिक महत्व देता था। आमतौर पर अनेक परिवारों में देखिएगा। अनेक विचारधारायें एक साथ चलती हैं। परमेश्वर एक हैं का आधा-अधूरा सिद्धांत को रट कर बिना तत्व चिन्तन किए हुए समस्त पूजन पद्धतियों को एक साथ मिला दिया जाता है।

मेरे पास कुछ मूर्ख साधक ऐसे आए, जो गायत्री एवं काली की साधना या मंत्र जप एक साथ कर रहे थे और घोर व्याधि से पीड़ित थे। मैंने ऐसा करने से उन्हें रोकवाया। क्योंकि एक परम सात्विक शक्ति है, और दूसरी परम तामसिक। इसी प्रकार कुछ लोग सरस्वती एवं भैरव की एक साथ। हनुमान एवं भूत-प्रेत की एक साथ या शिव एवं कामदेव की एक साथ उपासना संपन्न करेंगे तो निष्चित ही घोर पतन को प्राप्त होंगे। आप नरसिंह मंदिर में शरभेश्वर साधना संपन्न नहीं कर सकते। हनुमान मंदिर में रावण का आवाहन नहीं हो सकता इत्यादि।

बहुत से लोगों को तो मैंने इस प्रकार देखा है कि करेंगे हिन्दु देवी-देवताओं की उपासना और ताबीज पहने हुए हैं, किसी मौलवी का। ऐसी स्थिति में दो विपरीत शक्तियाँ टकराती हैं। व्यक्ति सदा किसी न किसी समस्या से घिरा ही रहता है। कुछ लोग तो मंगलवार को किसी हिन्दु देवी-देवता के मंदिरों में तो गुरूवार को किसी मजार पर मिलेंगे। बस यहीं पर शक्तियों की उठापटक चालू हो जाती है। आप जो दुर्गा या काली की उपासना करते हैं, वह परम भक्षिणी शक्ति है। यह महाशक्ति आपके मजार के पीर, दाता साहब इत्यादि का भक्षण चाहती है। क्योंकि इनका तो स्पष्ट  कथन है या तो शिव की सत्ता स्वीकार करो अथवा मेरे भक्षण को तैयार रहो। बस दोनों शक्तियाँ आपस में टकराती हैं और व्यक्ति ज्यादा लाभ के चक्कर में घोर हानि उठाता है। व्यक्ति का शरीर एक प्रकार से युद्ध का अखाड़ा हो जाता है, और शारीरिक परेशानी, मानसिक तनाव एवं पागलपन तक की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। कुछ घरों में तो ऐसा देखा गया है कि पति हनुमान, गणेश, शिव या दुर्गा की पुजा करता है, तो पत्नी किसी मजार पर जाती है और वहाँ की राख, चादर, चढ़े हुए फूल, अगरबत्ती इत्यादि को घर में या पूजा स्थान के समीप ही रख देती हैं, और हो जाती है, उठापटक उस घर में शुरू। कारण कुछ भी हो, कहीं न कहीं शक्ति की अवमानना होती तो है, तभी तो अनुकूल के बदले विपरीत परिस्थितियाँ देखने को मिलती हैं। मैं यह बातें अपने कल्पना मात्र से नहीं कह रहा, बल्कि इसके पीछे मेरा घोर आध्यात्मिक चिंतन है। जहाँ से ज्योतिशियों की बुद्धि स्तम्भित होती हैं, वहीं से महाविद्या साधक प्रारम्भ होते हैं। वह परिवार बंगाली था। क्या पता वहाँ शक्ति के घोर उन्मादिनी या भक्षिणी होने का क्या कारण रहा होगा? यह तो वहाँ जाने पर ही पता चलेगा। हो सकता है, इनमें से ही कोई कारण रहा हो।

कुछ लोग घोर शक्ति उपासक होते हैं, कुछ लोग घोर शिव उपासक। यह दोनों ही स्थितियाँ साधक के लिए हानिकारक है। शक्ति ने पहले भक्षण करना सीखा। बाद में वह वात्सलयमयी हुई। शक्ति की प्रचण्डता को रोकते हैं- शिव। सभी देवताओं एवं जीवों के पीछे शक्ति है। कोई व्यक्ति घोर शैव उपासक होता है, और शक्ति की अवहेलना करता है, तो भी शक्ति का प्रकोप झेलता है। कुछ लोग तो पूजा-पाठ भी करते हैं - आधी-अधूरी विधि से केवल दिखावा हेतु। कहीं-कहीं शक्ति का आवाहन तो हो जाता है, पर विसर्जन नहीं। अधिकतम पंडित आधी-अधूरी विधि से पूजन करवा कर चलते बनते हैं। यह घटना पटना के सुल्तानगंज मोहल्ले की है। क्या पता वह जमीन पहले किसी मुसलमान का रहा हो और उसके नीचे कोई पहले से कब्र वगैरह रहा हो। शक्ति उपासना होने पर दोनों चीजें टकराती हों और दुर्गा या काली तो नहीं आई किंतु पिशाचिनी जरूर आ गई।

उस घर में घोर पैशाचिक क्रिया हुई। जिस घटना की कोई सामान्य व्यक्ति कल्पना भी नहीं कर सकता, वह सब हो गया। क्या यह क्रिया लाश पर एक सप्ताह तक मछली-भात खानाकिसी सामान्य मनुष्य से संभव है। नहीं कदापि नहीं। कम से कम मेरी दृष्टि से तो नहीं। एक बात जान लें किसी पिशाच का आवाहन किया जाता है, तो उसे मछली की ही बली या भोग प्रदान किया जाता है।

अब इस घोर पैशाचिक क्रिया के पीछे मूल कारण क्या था, यह तो वहाँ जाने पर ही पता चलेगा। हो सकता है किसी वामाचारी या अघोर साधक ने वहाँ कुछ क्रिया संपन्न कर दी हो। क्योंकि अधिकतर अघोरी तो लाश नोच-नोच कर खाते हैं।

कृपा कर उस मोहल्ले के निवासी एवं पत्रकारगण आयें और मुझे वस्तुस्थिति से अवगत करायें ताकि मैं इस घोर पैशाचिक क्रिया के मूल में पहुंच सकूं। क्योंकि इस प्रकार की घटना शायद किसी अन्य के साथ भी घट सकती है।

आज तो सर्वत्र पैशाचिक क्रिया एवं वासना का भूत देखने को मिलता है।

समाचार पत्रों के कुछ उदाहरण देखें -

1.            अस्सी वर्ष की बुढ़िया के साथ बलात्कार

2.            पांच-छह वर्ष की बच्ची के साथ बलात्कार

3.            सामुहिक बलात्कार

4.            गर्भवती स्त्री की हत्या एवं बलात्कार

5.            पिता एवं ससुर द्वारा, भैंसुर द्वारा, भाई द्वारा बलात्कार इत्यादि

6.            लाश के साथ बलात्कार

छीः-छीः अब तो लिखा नहीं जाता।

मेरे पत्रिका (लेख) के अगले संस्करण में “क्यों है, सब पर वासना का भूत सवार” इस बात पर प्रकाश डालूंगा।

नोट:- यह लेख मैंने वर्ष 2007 में लिखा था. उस समय अपना एक पत्रिका प्रकाशित करवाने का विचार था, जिसमे मेरे द्वारा लिखे गए आध्यात्मिक लेख होते. पर यह योजना धरातल पर नहीं उतर पायी. ऐसे बहुत सारे आध्यात्म के विषय पर लिखे गए लेख यूँ ही पड़े रह गए. अर्थाभाव के कारण मासिक/वार्षिक पत्रिका का निकलवाना संभव नहीं हो पाया. इसलिए धर्म प्रेमी लोगो के कल्याण हेतु इन्टरनेट पर फ्री में उपलब्ध ब्लॉग पर लिख रहा हूँ. जितने लोग पढेगे मेरे विचारो से अवगत होकर अपनी जानकारी बढायेगे. पेपर पर निकला पत्रिका एक बार पढ़े जाने के बाद धीरे-धीरे पुराना होता जाता है. किन्तु इन्टरनेट पर सभी सामग्री ज्यों-की-त्यों बनी रहती है. इसे जब भी कोई खोलेगा, हर बार नए लोगो को भी नयी जानकारी मिलेगी.

अब तो नित्य ऐसे पैशाचिक क्रियाएं हो रही है. औरतो/लडकियो को हर कोई खा जाने वाली नजरो से ही देखते है. चारो ओर वासना का ही साम्राज्य दिखता है. पता नहीं किस युग में हम लोग जी रहे है?

निठारी हत्याकांड इसी पैशाचिक क्रिया का उदहारण है. इन दिनों जो दिल्ली में भाटिया परिवार में ११ लोगो की एक साथ ख़ुदकुशी का मामला आया है, वो यही आध्यात्म के बिगड़ जाने, भटक जाने का एक उदहारण है. उस भाटिया परिवार में जो छोटा भाई ललित था, वह स्वयं पर अपने मृत पिता के आने का दावा करता था. प्रेत ने उनके धर्म को आध्यात्म को बिगाड़ दिया. दिव्य शक्तियों को, इश्वर के स्पर्श को उस ललित तक पहुचने ही नहीं दिया. उचित ज्ञान के अभाव में ललित ने प्रेत के आने को, उस से ही वार्तालाप को ही दिव्यता समझ ली.

एक घटना और जानने को मिल रही है कि पाकिस्तान में कोई व्यक्ति कब्र से महिला की लाश को निकाल कर उस से बलात्कार करता था. अब भला इसे क्या कहेंगे? प्रेम या वासना अथवा पैशाचिक क्रिया. निश्चित ही यह न तो कोई मनुष्यों वाला प्रेम है और न ही केवल जानवरों वाला वासना. यह तो केवल और केवल एक पैशाचिक क्रिया मात्र ही है.

होता यह है कि लोग सिद्धियो के लालच में, लोगो के सामने झूठी वाह-वही लूटने के लिए, ईश्वरीय शक्ति के अलावे प्रेत आत्माओ की पूजा करने लगते है. पहले लगता है कि ये प्रेत आत्माए साधको के वश में हैं, पर धीरे-धीरे व्यक्ति इन अतृप्त प्रेत आत्माओ के चक्कर में आ जाता है. ये व्यक्ति के शरीर पर आकर उनको वश में कर लेते है और व्यक्ति उनका गुलाम बनता चला जाता है. मनुष्यों के सोचने-समझने की शक्ति समाप्त होती चली जाति है और वह केवल वही करता है जो ये अशरीरी अतृप्त आत्माये चाहती है. जिन आत्माओ को मूर्ति में, तस्वीर में, किसी स्थान में, कब्र में अथवा पिंड के रूप में जगह नहीं मिलती है, वे भटकती रहती है. गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने कहा भी है, जो व्यक्ति प्रेतों की पूजा करते है, वे प्रेतों को ही प्राप्त होते है, और जो व्यक्ति मुझ सच्चिदानंद परम ब्रह्म परमेश्वर की उपासना करते है, वो अंत समय में मुझे ही प्राप्त होते है, उन्हें मेरा परम धाम के दर्शन होते हैं.

इसलिए जो वास्तिवक साधक होते है, दुनिया के दिखावे से दूर, सिद्धियो के प्रदर्शन से अलग-थलग रहते है. अगर कोई दैविक शक्ति आती भी है तो किसी बाहरी पिंड जैसे मूर्ति, दीपक की लौ इत्यादी में दर्शन देती है, वार्तालाप करती है. मैं एवं मेरे गुरु भी किसी भी अलौकिक अशरीरी शक्तिओ को अपने शरीर पर आने की आज्ञा नहीं देता, उनका आवाहन नहीं करता. बस अब सारी बाते तो समझ में आ ही गयी होगी.

इस विषय पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे, अपने विचारो से अगवत अवश्य करवाए, क्योकि यह एक विश्व व्यापी भावनात्मक समस्या है, जो कभी भी कही भी किसी के संग घट सकती है.

                                               --- श्री अभिषेक कुमार,

मंत्र, तंत्र, यन्त्र विशेषज्ञ,महाविद्याओ के सिद्ध साधक, ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री,

(परम पूज्य गुरुदेव श्री निखिलेश्वरानंद जी महाराज की कुल परंपरा में दीक्षित परम प्रिय शिष्य)

शक्ति अनुसन्धान केंद्र, पटना सिटी.
 
 



लेखक :- श्री अभिषेक कुमार, मंत्र, तंत्र, यन्त्र विशेषज्ञ, शक्ति सिद्धांत के व्याख्याता, दस महाविद्याओं के सिद्ध साधक, श्री यन्त्र और दुर्गा सप्तशती के विशेषज्ञ, ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री.
Mob:- 9852208378,  9525719407  

मिलने का वर्तमान पता:-
पुष्यमित्र कॉलोनी, संपतचक बाजार
(गोपालपुर थाना और केनरा बैंक के बीच/बगल वाली गली में)
इलेक्ट्रिक पोल नंबर-6 के पास
पोस्ट-सोनागोपालपुर, थाना-गोपालपुर
संपतचक, पटना-7
नोट:-संपतचक बाजार, अगमकुआँ में स्थित शीतला माता के मंदिर से लगभग 8 किमी॰ दक्षिण में स्थित है। नेशनल हाईवे - 30 के दक्षिण में एक रोड गयी है, जो पटना-गया मेन रोड के नाम से जाना जाता है। इस रोड पर ही बैरिया बस स्टैण्ड है। इसी बस स्टैण्ड के दक्षिण संपतचक बाजार स्थित है। यहीं केनरा बैंक के ठीक बगल वाली गली में मेरा मकान है। जहाँ आप सभी धर्मप्रेमी भक्तजन/जिज्ञासु समय लेकर मुझसे कभी भी मिल सकते हैं।

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