श्री हनुमत तत्व चिंतन

 

 


'' श्री हनुमत तत्व चिंतन ''

आदरणीय प्रभु श्री राम के भक्तों एवं हनुमन्त उपासक,

                                            शुभार्शीवाद 

प्रभु श्री राम के समस्त कार्य संपन्न करने वाले श्री बजरंगबली हनुमान आपके जीवन के समस्त बाधा-विध्नों का संपूर्णता से नाश कर दें, एवं आपको प्रभु श्री राम की अनन्य भक्ति प्रदान करें, ऐसा आर्शीवाद देता हूँ, ऐसी कामना करता हूँ।

श्री बजरंगबली हनुमान जन-जन के अराध्य देव हैं। भक्तों के हित रक्षक के रूप में श्री बजरंगबली का नाम सर्वोपरि है। लोगों का हनुमान जी के प्रति विश्वास एवं भक्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज भारतवर्ष में सर्वाधिक मंदिर श्री हनुमान जी के ही हैं। श्री बजरंगबली की उपासना जहाँ ग्रामदेवता के रूप तक में की जाती है] वहीं ये साक्षात् परमब्रह्म के प्रतीक हैं। भगवान सदाशिवशंकर साक्षात सर्वशक्तिमान हैं, श्री गणेश शक्तिपुत्र हैं, तो वहीं श्री बजरंगबली साक्षात शक्तिधर हैं, शक्ति को धारण किया है - अपने तन में, अपने मन में अपनी आत्मा में। शक्ति के प्रत्येक आयामों को धारण किया है, श्री बजरंगबली ने। इसलिए प्रत्येक शिवालयों में एवं शक्तिपीठों में श्री बजरंगबली की स्थापना अवश्य की जाती है।

हनुमान चालीसा में तुलसीदास जी ने कहा है -

दुर्लभ काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

कल्पना करें कि वह महापराक्रमी व्यक्तित्व जो साक्षात् ईश्वर के अवतार प्रभु श्री राम के महान एवं असाध्य कार्यों को संपन्न कर सकें, क्या उनकी अराधना से आपके जीवन के छोटे-मोटे कार्य संभव नहीं।

श्री हनुमान जी को कपीश्वर कहा जाता है, अर्थात् समुद्र का लंघन करने वाला। श्री बजरंगबली की उत्पत्ति कोई सामान्य घटना नहीं थी। इसके पीछे भगवान शिव एवं ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करने वाली महाशक्तियों का अद्भुत चिंतन था। भगवान श्री गणेश शिव एवं शक्ति के पुत्र हैं, एवं सभी मातृ शक्तियों ने इन्हें अपने प्रथम पुत्र के रूप में स्वीकार किया है। शिव-शक्ति के पुत्र होने के कारण इन्हें प्रथम पूज्य एवं गणनायक के रूप में स्वीकार किया गया, क्योंकि यह साक्षात् \ कार स्वरूप एवं प्रणव के अवतार हैं। किंतु जब पृथ्वी की संपूर्ण परिक्रमा की बात आई तो श्री गणेश जी ने शॉर्ट (लघु) रास्ता चुना। शिव-पार्वती की परिक्रमा कर, तर्क द्वारा उन्होंने स्वयं को विजेता मनवा ही लिया। लेकिन हर जगह यह छोटा रास्ता अपनाने की बुद्धि कार्य नहीं करती। व्यक्ति को पराक्रम दिखाना ही पड़ता है। समुद्र और आकाश एक करना ही पड़ेगा, तभी जाकर मानव सभ्यता का विकास संभव हो पाएगा। श्री हरि विष्णु एवं भगवान शिव यह समझ रहे थे। श्री हनुमान के रूप में भगवान शिव ने ग्यारहवें रूद्र का निर्माण किया, जो अत्यंत पराक्रमी हो साथ ही समस्त असंभव लगने वाले कार्य को भी संभव बना दे।


 

श्री हनुमान के रूप में सदाशिव शंकर एक ऐसी कृति चाह रहे थे, जिसमें रूद्रों के समान महाप्रलयंकारी शक्ति तो हो ही, साथ ही संपूर्ण जीवों के प्रति संवेदना हो, प्रभु श्री राम की भक्ति हो। कुछ देवता भक्ति मार्ग से सिद्ध होते हैं, तो कुछ तंत्र मार्ग से। श्री हनुमान जी की उपासना जहाँ परम तांत्रिक देव के रूप में होती है, वहीं यह सामान्य गृहस्थ भक्तों के परम अराध्य हैं और उनके एक पुकार पर उपस्थित होते हैं।

एक बात जान लें कि अब तक मानव सभ्यता ने सबसे ज्यदा आत्मासात् किया है, तो वह है - श्री राम का नाम और सबसे ज्यादा विरोध भी हुआ है, तो श्री राम के नाम का ही।

क्या करें, सर्वप्रथम राम पर अविश्वास उनका विरोध साक्षात् शक्ति का अवतार देवी उमा ने ही किया। ऐसी मान्यता है कि काशी में मरनेवाले प्रत्येक प्राणियों के कान में भगवान शिव तारक मंत्र के रूप में राम मंत्र ही फुंकते हैं। इसी राम नाम की महत्ता सारे संसार में प्रतिपादित करने हेतु भगवान शिव ने हनुमान के रूप में ग्यारहवाँ रूद्रावतार धारण किया। वर्तमान समय में भी देखें तो राम के ही विरोध ,राम के ही भक्ति में लोगों की दिनचर्या चल रही है। राम का नाम ले के जहाँ तुलसीदास, कालीदास, रसखान, गुरूनानक देव इत्यादि विश्वविख्यात् कवि, महान संत इत्यादि हो गए हैं, तो कितनों का राजनीति का धंधा राम के विरोध पर ही चल रहा है। दिल्ली प्रेस समूह से निकलने वाली पत्रिकाओं ने, विदेशी पत्रिकाओं ने, अम्बेडकरवादियों ने जितना हो सका, राम के खिलाफ आग उगला। क्या हुआ इन सबका, सब के सब मिट गए, किंतु राम नाम की पवित्रता लोगों के हृदय से नहीं मिटा सके। इस संसार में राम नाम की पवित्रता बनी रहे, इसके लिए श्री बजरंगबली हमेशा तत्पर रहते हैं।

एक कवि ने कहा भी है - राम तुम्हारा जीवन स्वयं एक काव्य है, कोई कवि बन जाए सहज सम्भाव्य है।

 राम नाम की महत्ता के बारे में कहा गया है - एक राम का पार न पाया, एक राम ने संसार बनाया।

जब भी कोई हिन्दु मरता है, श्मशान ले जाते वक्त यही उद्घोष किया जाता है - ‘‘श्री राम नाम सत्य है।’’ बस इसी राम नाम की सत्यता को बनाये रखने हेतु ही भगवान शिव अपने समस्त गणों के साथ निरंतर क्रियाशील रहते हैं।


 

भला क्या रिश्ता था, श्री राम एवं हनुमान का?

भगवान श्री राम का जहाँ अन्य रिश्तों से वियोग हुआ, वहीं श्री राम एवं हनुमान में कभी भी वियोग नहीं हुआ। सदा छाया की तरह साथ रहते थे - श्री हनुमान।

श्री राम एवं हनुमान के रिश्तों में निश्छल प्रेम था। राम ने एक के खातिर दूसरे को छोड़ा। उनके त्याग में दुःख था। किंतु हनुमान ने केवल श्री राम के खातिर सबको छोड़ा। लेकिन उनके त्याग में कोई बंधन नहीं, मर्यादा नहीं, किसी को दिया वचन नहीं, लोकलज्जा का भय नहीं, बल्कि विशुद्ध प्रेम था, स्वतः त्याग था। किसी का आदेश नहीं।

एक सच्चे शिष्य को भी इसी प्रकार  होना चाहिए। गुरू पर विभिन्न प्रकार की जिम्मेवारियाँ होती हैं। उन्हें विभिन्न प्रकार के दुःख झेलकर भी शिष्यों का कल्याण करना होता है। सच्चे एवं समर्पित शिष्यों को एकमात्र गुरू की प्रसन्नता हेतु ही सब कुछ छोड़ देना चाहिए। भगवान सूर्य ने हनुमान जी की प्रार्थना पर उन्हें दीक्षा देने से यह कहकर इंकार कर दिया कि - पुत्र! मैं हमेशा गति में रहता हूँ। आकाश मण्डल में विचरण करता रहता हूँ। तुम्हें किस प्रकार ज्ञान प्रदान कर सकूंगा? श्री हनुमान ने उनके रथ के समान गति में उड़ते-उड़ते ही ज्ञान प्राप्त किया। यह कथा प्रतीकात्मक हो सकती है। गुरू के कदम से कदम मिलाकर चलने की। तभी ज्ञान पूर्ण हो सकता है।

अगर तात्विक दृष्टिकोण से देखें तो श्री राम और हनुमान में कोई अंतर नहीं। श्री राम ने एक दिन कौतुक करते हुए हनुमान से पूछा कि तुम कौन हो?

श्री हनुमान बोले - शरीर की दृष्टि से मैं आपका दास हूँ, आध्यात्म की दृष्टि से मैं आपका अंश हूँ और परमतत्वानुसार अर्थात् शिव दृष्टि अर्थात् आनंद दृष्टिनुसार मैं और आप एक हैं। जो आप हैं, वही मैं हूँ और जो मैं हूँ, वही आप हैं। हममें तुममें कोई भेद नहीं है।'

एक शिष्य और गुरू के संबंधों में यही भाव होना चाहिए। आत्मा सबका एक होते हुए भी शरीर का अपना महत्व।

हनुमान जी के रूप में भगवान शिव एक ऐसे महारूद्र की उत्पत्ति चाह रहे थे] जो नारी में न उलझे। स्त्री का उसके जीवन में महत्व अत्यंत कम हो, स्त्री उसकी जीवन संगिनी न हो। चौंसठ योगिनी मंगल गावत नृत्य करत भैरो। सभी भैरवों के संग भैरवियाँ लगा ही दी गईं। नाम भी एक से एक, उन्मत्त भैरव, रूरू भैरव, संहार भैरव, कपाली भैरव इत्यादि। केवल शिव आज्ञा पूर्ण करने ही कार्य थोड़े चलेगा, उसे शिष्ट भी होना चाहिए। उन्मुक्तता हर जगह थोड़े ही चलेगी। भैरव को महाभैरव मिल ही जाएगा।

जो स्त्री में उलझ गया, जो नारी में उलझा वह क्या जाने नारायण को? या तो नारी से विवाह कर लो, या फिर नारायण के हो लो। दोनों एक साथ नहीं चलते। यही कपि मुख का रहस्य है। नारायण से प्रीति रखने वाले, नारी से सदैव दूर रहने वाले श्री हनुमान की आनुवंशिक संरचना शिव ने गढ़ दी।

श्री हनुमान के रूप में एक अति विचित्र जीव, आत्मा, संरचना, मानस इस पृथ्वी पर आया, जिसका कोई तोड़ नहीं। क्योंकि श्री हनुमान को एक ऐसे शिव भक्त का संहार करवाना था, जो केवल विज्ञानमय कोश में ही जीता था। पृथ्वी के वातावरण को दूषित कर रहा था। विश्व की समस्त नारियों का लंका में बंधन कर रखा था, रावण ने। जो स्त्रियों में उलझ जाएगा, वह भला क्या स्त्रियों को मुक्ति दिलाएगा?


 शिवाज्ञानुसार भगवान भैरवदेव एवं श्री हनुमान दोनों ही सशरीर कलियुग के अंत तक पृथ्वी पर विराजमान हैं और अभी भी भक्तों को किसी न किसी रूप में आकर दर्शन देते ही हैं।

राम नाम की पवित्रता, नित्यता एवं आनंद बनाये रखने हेतु ही भगवान शिव अपने इस रूप में क्रियाशील रहते हैं। वेद का आनंदमुख तो शिव ने उसी दिन कीलित कर दिया था, जिस दिन दक्ष यज्ञ विध्वंस हुआ था। स्वर्ण मुद्राओं पर बिके वेदपाठी ब्राह्मणों ने सत्यम, शिवम्, सुंदरम् को त्याग कर मुर्ख दक्ष का साथ दिया। कपि स्वरूप धारण किए नंदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि - आज के बाद दक्ष समर्थित एवं शिव द्रोही सभी ब्राह्मण वेदों का उपयोग केवल उदर भरण पोषण के लिए ही कर पायेंगे। वे कभी भी वेद के आनंदमयी कोश में प्रविष्ट नहीं हो पायेंगे। केवल कर्म बंधनों की मुक्ति के लिए ही, कर्म फलों की प्राप्ति हेतु ही, तुम वेदों का उपयोग करते रहोगे। रामायण के रूप में पुनः हनुमान ने वेद के आनंदमयी मुख का उद्धार कर किया। आनंद ही आनंद, रस ही रस बस यह रामायण का मूल तत्व है। आनंद रस का निर्झर स्रोत है - रामायण। रामायण को समझे बिना रामायण रूपी कल्प वृक्ष के सान्निध्य में विराजे बिना वेद तो केवल पराविज्ञानमयी कोष हैं, ज्ञानमयी कोष हैं, जिनके द्वारा अनंत प्रकार के फलों की प्राप्ति तो की जा सकती है, सभ्यता का अद्भुत विकास तो किया जा सकता है, परंतु आनंद की प्राप्ति कदापि संभव नहीं। इसलिए आनंद रामायण की रचना हुई। विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताओं में रामलीला अवश्य खेली जाती है, पूर्ण आनंद की प्राप्ति हेतु। कोई गुरूनानक लीला,  बुद्ध चरित्र, तीर्थंकर चरित्र, पैगम्बर लीला, मसीह लीला का चित्रण नहीं करता। उनके मानने वाले भी नहीं। किंतु रामलीला का मंचन अनंत कालों से होता चला आ रहा है, और जब तक पृथ्वी रहेगी, तब तक होता रहेगा। ऐसी कथा आती है कि एक बार श्री राम का विरोध करने के कारण शनि को अपनी पूंछ में लपेट कर श्री बजरंगबली ने खुब पीटा था। जिसने भी श्री राम का विरोध किया, श्री हनुमान ने उसे खुब पीटा। अब या तो श्री राम का विरोध कर हनुमान जी से मार खाओ अथवा श्री राम का नाम लेकर भवसागर से पार हो जाओ। - हृदय विराजत अवध बिहारी

श्री हनुमान जी को तंत्र क्षेत्र में जागृत देवता कहा जाता है। कलियुग में शीघ्रातिशीघ्र प्रसन्न होने वाले, फल देने वाले देवता हैं - श्री महावीर हनुमान।

हनुमान का तात्पर्य है - प्राण, प्राणों के देवता। भगवान शंकर एवं श्री हरि विष्णु ने मिलकर वास्तव में प्राण शक्ति का निर्माण हनुमान के रूप में किया है।

कुछ लोग हनुमत उपासना के नाम पर खेल करते हैं, मजाक करते हैं। आधी-अधूरी विधि से बिना गुरू के निर्देशन में कुछ-न-कुछ करते रहते हैं। वास्तव में हनुमद उपासना दुधारी तलवार है। ठीक से हुई तो आबाद कर देगी, अन्यथा अवमानना हुई तो बर्बाद भी कर देगी।


 श्री हनुमद शक्ति के अभाव में संसार के किसी भी क्षेत्र में कहीं भी विजय प्राप्ति संभव नहीं है
, यही राम आदेश है। कब तक एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी, दूसरी से तीसरी, चौथी करते रहोगे। जीवन के उबड़-खाबड़ रास्तों में भला कौन सीढ़ी तुम्हारे लिए लगाएगा। कूदने की कला आनी चाहिए, पार कर जाना चाहिए। जितने भी विश्व विजेता हुए हैं, सबों ने अपने राष्ट्र की सीमा लांघी है। कुल, धर्म, जाति-पाति के बंधनों को लांघा है, तभी वे विश्व विजेता बने। विवेकानंद के रूप में रामकृष्ण परमहंस ने भी एक पूर्ण ब्रह्मचारी, स्त्री विमुख हनुमद् शक्ति का विकास कर ही लिया और विवेकानंद भी कूद-फांद कर समुद्र लंघन कर ही गए और अपने शिव स्वरूप गुरू के कल्याणमयी संदेशों को पूरे संसार में प्रचारित-प्रसारित कर ही दिया। हम भी अपने शिव स्वरूप गुरू के कपि हैं। कूद-फांद करते ही रहते हैं। बस गुरूदेव का दिव्य नाम सबके हृदय में आनंद की लहरें उत्पन्न करता रहे, इसी के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।

श्री बजरंगबली के बारे में बस इतना ही कहना चाहूंगा - ‘‘राम नाम जपते हैं, मस्ती में रहते हैं।’’ श्री कपीश्वर ने प्रभु श्री राम के अलावे और किसी की आज्ञा नहीं मानी। किसी वचन, मर्यादा, लालच, धन, श्राप इत्यादि के कारण श्री राम की सेवा नहीं की, बल्कि दिव्य आध्यात्मिक कार्य हेतु शिवाज्ञा से ही अपने आनंद से ही श्री राम की सेवा में संलग्न रहे। किसी भी प्रकार का आध्यात्मिक या भौतिक अस्त्र-शस्त्र का, ग्रह-नक्षत्रों का उन पर असर नहीं होता, क्योंकि हृदय में श्री राम को विराजमान कर रखा है। सारे बदन पर जगदम्बा के नाम का सिंदुर पोता रखा है।

भक्तों के हित रक्षक के रूप में श्री पवनपुत्र सदा क्रियाशील रहते हैं। जहाँ ब्रह्माण्ड की मूल शक्तियों जैसे -महाविद्याओं के एक-या दो आध्यत्मिक अस्त्र-शस्त्र, मिलते हैं, जैसे - चण्डिकास्त्र, कालीकास्त्र, बगलामुखी अस्त्र इत्यादि, वहीं श्री मारूतिनंदन के अनेक अस्त्र-शस्त्र मिलते हैं, जैसे - कपीन्द्रास्त्र, लांगुलास्त्र एवं घोरास्त्र इत्यादि। सामान्य भाषा में तुलसीदास द्वारा लिखित जन-जन के कल्याण हेतु लिखित बजरंग बाण को कौन भला भुल सकता है।

पशुपति शिव महेश्वर अघोर हैं, तो श्री हनुमान घोर। अघोर से क्या तात्पर्य? सामान्य संसार के समझ से परे, अलौकिक विलक्षण कार्य है, एक महा-अघोरी का कार्य। भगवान शंकर के महा-अघोर कार्यों को घोर रूप संसार प्रदान कर संसार के उपयोगी बनाते हैं - श्री हनुमान। भगवान शिव ने विष कंठ में धारण कर लिया। किसी भी शरीर धारी देव शक्ति से यह कार्य संभव नहीं था। लेकिन श्री बजरंगबली उस विष का तोड़ संजीवनी बुटी के रूप में खोज लाये। शिव का कार्य शिव ही जाने। अनंत काल बीत गए, किंतु आज तक कोई भी विष को कंठ में धारण करना नहीं सीख पाया। किंतु हनुमान जी द्वारा औषधि (दवा) खोज लाने का कार्य मानव सभ्यता ने अपना लिया और बड़े-बड़े रोगों पर महामारियों पर विजय प्राप्त कर लिया।

न जाने कितने स्वरूप हैं, श्री हनुमान जी के कहा नहीं जा सकता। एकमुखी हनुमान, पंचमुखी हनुमान, सप्तमुखी हनुमान, एकादश मुखी इत्यादि। प्रत्येक देव शक्तियों को प्रिय हैं - श्री हनुमान। स्वर्णाकर्षण भैरव के रूप में बगलामुखी के संग चलते हैं, स्तंभित कर के रख देते हैं।

अपने इस परमप्रिय संरचना को, शिष्य को, दूत को भगवान शिव ने सर्वप्रथम दिव्य कैलाश में अपना पंचानन स्वरूप प्रदान किया। किंतु यहाँ एक अंतर है। हनुमान जी के पाँचों मुख पशु स्वरूप धारण किए हुए हैं - उनके पूर्व दिशा का मुख वानर का है, पश्चिम दिशा का मुख गरूड़ का है, उत्तर दिशा का मुख वाराह का, दक्षिण दिशा का मुख नरसिंह का है एवं ऊर्ध्व दिशा का मुख हयग्रीव का है। यहाँ स्पष्ट कथन है - पशुपति तो एकमात्र महादेव शिव ही हैं, एवं हम सब उनकी आज्ञा में बंधे हुए पशु ( श्लीं पशुं हुं फट्) रावण ने शिव के पशु, वाहन नंदी की अवमानना कर दी, उनका कपि मुख देख हंसी कर बैठा, बस नंदी ने भी श्रापित कर ही दिया - यही कपि मुख तुम्हारे विनाश का कारण बनेगा। जो कोई भी शिव अवमानना करते हैं, पशुओं द्वारा उनका शिकार हो जाता है। हनुमान जी के ये पांचों मुख महान भयों का निवारण करने वाला है। यह अभिषेक भी अपने गुरू का पशु है। उनकी आज्ञा से बंधा हुआ। नीचे मैं हनुमान जी के पांचो विशिष्ट स्वरूप का मंत्र लिख रहा हूँ।

पूर्वमुख हनुमान - हनुमान जी के पूर्व दिशा का मुख वानर का है और यह सभी शत्रुओं के भय को दूर करने वाला है।

नमो भगवते पंचवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकल शत्रु संहरणाय स्वाहा।।

पश्चिममुखी हनुमान - श्री मारूति नंदन के पश्चिम दिशा का मुख गरूड़ का है और यह सभी प्रकार के विषों का निवारण कर देता है।

नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिममुखाय गरूड़ाननाय सकलविपद्धराय स्वाहा।।

(नोट :- यहाँ विपद्धराय' को विपद् हराय पढ़ें।)

उत्तरमुखी हनुमान - हनुमान जी का उत्तरमुख वाराह स्वरूप का है और यह सभी प्रकार की धन संपत्ति प्रदान करने वाली है।

नमो भगवते पंचवदनायोत्तर मुखायादिवराहाय सकल संपत्कराय स्वाहा।।

दक्षिणमुखी हनुमान - हनुमान जी का दक्षिणमुखी स्वरूप नरसिंह का है और यह सभी प्रकार के भूत-प्रेत तथा अन्य इतर योनियों का नाश कर देता है।

नमो भगवते पंचवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा।।

ऊर्ध्वमुखी हनुमान - हनुमान जी का ऊपर का मुख हयग्रीव (घोड़े) का है और यह समस्त जगत का वशीकरण करता है। यह मुख शिव-शक्ति के आनंदमयी लीला का रसपान करता है।

नमो भगवते पंचवदनायोर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशंकराय स्वाहा।।

परतंत्र, परमंत्र, परयंत्र, दूसरों के द्वारा किए गए तांत्रिक अभिचार कर्मों के विध्वंसक हैं, श्री हनुमान जी। अपने पूंछ में श्री राम की ध्वनि का उच्चारण करने वाली घंटी बांधकर चौकी लगाकर बैठ जाते हैं, श्री बजरंगबली। श्री हनुमान जी का स्पष्ट कथन है - इस संसार में एकमात्र राजाधिराज श्री राम हैं] ब्रह्माण्ड पर केवल शिव का ही आदेश चलेगा, अन्य किसी का नहीं। तथाकथित सम्राटों द्वारा बनाये गए कानूनों की धज्जियाँ उड़ा देते हैं - श्री हनुमान जी। ईश्वरीय आदेश, श्री राम की मर्यादा के आगे लोगों का लिखा हुआ संविधान धरा रह जाता है। अकबर ने पंडितों के बहकावे में आकर तुलसीदास को कैद कर लिया, बस हनुमान जी ने स्वप्न में आकर श्री राम का आदेश सुना दिया। तुलसीदास को छोड़ने का स्पष्ट आदेश दिया, नहीं तो पूरा राज्य तहस-नहस कर देने की चेतावनी। क्या हुआ अकबर के शरीयत के कानून का, पैगम्बर के आदेश का, एक ईश्वर के सिद्धांत का। श्री बजरंगबली के चेतावनी मात्र से थर्रा उठा अकबर। यह बात जान लो कि संसार की कोई भी शक्ति श्री राम के भक्तों का रास्ता नहीं रोक सकती। सारे संसार ने देखा 6 दिसम्बर 1992 को। भारत का संपूर्ण संवैधानिक, प्रशासनिक तंत्र धरा का धरा रह गया और श्री राम भक्तों ने बाबरी मस्जिद विध्वंस कर विजय प्राप्त कर ली, उसी प्रकार जैसे त्रेता युग में श्री रामदूत हनुमान ने लंका विध्वंस का कार्य संपन्न किया था, श्री हनुमान जी को युद्ध का देवता माना जाता है। जीवन एक युद्ध है, संग्राम है, जिसमें न जाने कितनी आसुरी शक्तियाँ युद्ध पीपासु होकर खड़ी हैं। रुलाने वाले का जो रुला दे, वही महारुद्र है। बंधनों को काट देते हैं - श्री हनुमान।

साधनात्मक दृष्टिकोण से इनकी उपासना सदा शुद्ध वायु एवं खुली जगह में ही की जाती है।

राम-रावण युद्ध के समय श्री हनुमान साक्षात् श्री राम की सेना के आगे ध्वज लेकर चल रहे थे। ध्वज पताका उन्हीं के हाथ में सदैव रहती थी। ध्वज उसी को दिया जाता है, जो परम विश्वासी, अतुलित बलशाली और परम पराक्रमी होता है। ध्वज के आगे संसार में किसी भी वस्तु का मूल्य शून्य है। ध्वज विजय का प्रतीक है। ध्वज गिर गया तो हार माना जाता है। आजादी की लड़ाई में भी एक तिरंगे झंडे के आन की रक्षा हेतु लोगों ने हंसते-हंसते सिर कटा दिए, गोलियाँ खाईं, जेल गए, फाँसी पर चढ़ गए। श्री विष्णु के प्रत्येक अवतार में धर्म ध्वजा किसी न किसी रूप में हनुमद् शक्ति ही धारण करती है। यही कारण है कि प्रत्येक विष्णु अवतार के देवालय पर कपिध्वज अवश्य लहराता है। रावण एवं उसके अनुचर उपद्रवी थे। उपद्रवी के यहाँ महाउपद्रव कर दिया] दूसरों को उजाड़ने वाले को उजाड़ दिया। यही कारण है कि तंत्र क्षेत्र में हनुमत शक्ति का सर्वोपरि महत्व है।

लोग ईश्वर के दर्शनों की रट लगाये रहते हैं। निरंकार रूवरूप की कल्पना कर उसे प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं। पर एक बात जान लो, पहले हनुमद शक्ति अर्थात ईश्वरीय दूत से मिलन होगा, तभी ईश्वर मिलेंगे। निखिलेश्वरानंद जी को प्राप्त करने से पहले हमलोगों से दो-चार होना पड़ेगा। तभी साक्षात् शिव स्वरूप निखिल आयेंगे।

श्री हनुमान जी अष्ट सिद्धि, नव निधि के दाता हैं। अपने भक्तों को श्री राम के सगुण स्वरूप एवं निर्गुण स्वरूप के दर्शन कराते हैं। अपने कंधों पर बिठाकर शिव लोक तक ले जाते हैं।

हनुमान से, हनुमत शक्ति से तात्पर्य केवल एक शरीर विशेष से मत लगा लेना। बल्कि यह तो एक चेतना है, सार्वभौमिक तत्व है, जो ब्रह्माण्ड की मूल शक्तियों के साथ सहायक रूप में उपशक्ति के रूप में विराजमान रहती है। काल, युग एवं धर्म के अनुसार यह विशिष्ट स्वरूप धारण कर मानव सभ्यता का मार्ग प्रशस्त करने आती हे।

 

हनुमान जी की महिमा के बारे में क्या कहुँ? कागज कम पड़ जायेंगे। अनंत काल बीत जाएं, तो भी शब्दों की कमी नहीं होगी। कल्पना करें कि जिनका व्यक्तित्व इतना विशाल, भव्य हो कि उनके कंधों पर साक्षात् प्रभु श्री राम, महाकाली विराजमान हों, रावण, शनि, यम काँप उठे, उनकी महिमा का वर्णन भला मेरे जैसा अल्पमति पूर्ण रूप से कैसे कर सकता है, जब तुलसीदास जी असमर्थ हो गए। मेरे भी जीवन में एक लंबी कूद दी श्री बजरंग बली ने, कल्पना नहीं कर सका था मैं। आज भी श्री बजरंगबली भारत भूमि की दुष्ट शक्तियों से रक्षा करते रहते हैं। रामेश्वरम् के पास श्री हनुमान जी का एक दिव्य विराट विग्रह है, जिसकी एक आँख दक्षिण की तरफ लंका को निहारती रहती है और दूसरी आंख से वे सूर्य मण्डल में विराजमान प्रभु श्री राम की तरफ देखते रहते हैं। इस प्रकार वे सदैव भारत भूमि की राक्षसी शक्तियों से एवं प्राकृतिक उत्पातों जैसे सुनामी इत्यादि से रक्षा करते रहते हैं।

अंत में हनुमान जी की इन शब्दों में स्तुति करना चाहता हूँ-

¬ मनोजवं मारूत तुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।

वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये।।

श्री रामदूत बजरंगबली महावीर हनुमान के परम भक्त एवं महाविद्याओं के सिद्ध साधक -

परमपूज्य श्री अभिषेक कुमार

शक्ति अनुसंधान केन्द्र, पुष्यमित्र कॉलोनी, संपतचक बाजार, पोस्ट-सोनागोपालपुर, थाना-गोपालपुर, संपतचक, पटना-7
Mob:- 9852208378, 9525719407
 E-mail:- shaktianusandhankendra@gmail.com
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