श्री भैरवी उत्पीड़नम : मुझे एक लड़की से प्यार हो गया है, क्या करूँ?

श्री भैरवी उत्पीड़नम

(मुझे एक लड़की से प्यार हो गया है, क्या करूँ?)

वर्तमान समस्या 




कबीर ने कहा था - पोथी पढ़ी-पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
तथा
जो घट न संचरे प्रेम रस, वो जान मृतक समान। जैसे खाल लुहार की सांस लेत बिनु प्राण।।

मैं उस विषय पर इस लेख में प्रकाश डाल रहा हूँ, जो सृष्टि के आरंभ से अब तक का सबसे ज्यादा विवादित विषय रहा है। इस लेख में सबसे ज्यादा ध्यान देने की बात है कि मैं अपनी बात भी कह दूं और आध्यात्म की हानि भी न हो और न ही सांसारिक पाखण्ड में फँसु।
पहले यह जानें कि यह भैरवी उत्पीड़न क्या है? इसकी परिभाषा अत्यंत व्यापक है। लेकिन अपनी तुच्छ बुद्धि से शिव एवं शक्ति के गोपनीय पहलू पर संक्षेप में प्रकाश डाल रहा हूँ। यह मानव योनि कर्म योनि है, जबकि इससे ऊपर एवं नीचे की योनियाँ भोग योनि। भैरवी उत्पीड़न समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि भैरवी क्या है? शक्ति सिद्धांत के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति का आदि कारण भगवती त्रिपुर सुन्दरी हैं। मूल शक्ति के आस-पास जो उनकी सेविकायें रहती हैं, वे ही भैरवियाँ कही जाती हैं। मूल शक्ति तृप्त हैं, किंतु ये उपशक्तियाँ अतृप्त हैं। क्योंकि आद्या के मानस में अतृप्तता उत्पन्न हुई, विकार आया और ये भैरवियाँ अतृप्त हुईं। ये भैरवियाँ नित्य प्रलय की अधिष्ठात्री देवी हैं। सृष्टि में लयात्मकता बनाये रखने हेतु नित्य प्रलय आवश्यक है। नहीं तो आद्या को महाकाली बन महाप्रलय करना होगा। परमेश्वर द्वारा दिए गए निर्देश को कार्यरूप में परिणत करते हैं - भैरव एवं भैरवियाँ। शिव ने आज्ञा दी - भैरव! ब्रह्मा का पंचम मुख व्यर्थ की बकवास कर रहा है, इसे काट लो। और बिना आगे-पीछे सोचे केवल शिव की आज्ञा मान ब्रह्मा का सिर नोच भैरव ने ब्रह्महत्या का पाप भी स्वीकार किया।


परमेश्वर की ओर से ब्रह्माण्ड के समस्त प्राणियों को दो प्रकार से उत्पीड़न होता है - भैरव उत्पीड़न और भैरवी उत्पीड़न। भैरव उत्पीड़न जहाँ शरीर पर होता है, वहीं भैरवी उत्पीड़न मानसिक होता है।
किसी भी प्रकार के भैरव उत्पीड़न में भैरवी शक्तियाँ ही क्रियाशील होती हैं। संक्षेप में इसे यह समझो कि किसी विषैले जीव-जंतु द्वारा काट खाना, चोट लगना, दुर्घटना होना, युद्ध होना इत्यादि भैरव उत्पीड़न के अंतर्गत है। जबकि किसी के लिए मानसिक रूप से दुःखी होना, किसी पर-पुरूष या पर-स्त्री के लिए विलाप करना, असंतुष्टि का भाव होना इत्यादि भैरवी उत्पीड़न के अंतर्गत आते हैं। भैरव उत्पीड़न का मूल कारण कहीं न कहीं शिव अवमानना एवं भैरवी उत्पीड़न का मूल कारण शक्ति की अवहेलना है। भैरवियाँ अनेक हैं, जैसे - त्रिपुर भैरवी, बाला भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, रक्तनेत्रा भैरवी, डामर भैरवी, संपत्प्रदा भैरवी इत्यादि। ये भैरवियाँ जो न करे सो कम है। इन्होंने ने तो सर्वप्रथम शिव एवं शक्ति के मन में ही विक्षोभ उत्पन्न किया। आज जिधर देखो उधर भैरवी उत्पीड़न। प्रेम के नाम पर भिखारी बनना, घर-द्वार छोड़ देना, पढ़ाई-लिखाई छोड़ देना, आध्यात्म का मार्ग छोड़ देना, किसी की हत्या कर देना या स्वयं आत्महत्या कर लेना, जहर खाना, फांसी लगाना, नसें काट लेना, बलात्कार करना, इत्यादि यही तो हो रहा है। वास्तविक आध्यात्म की तो बात ही छोड़ो। संसार का प्रत्येक प्राणी मल-मूत्र के स्थानों के आकर्षण में लिप्त है। और यह एक हद तक जरूरी भी है। सभी अगर परम शैव मार्गी हो जायें, तो सृष्टि में गति संभव ही नहीं। शिव की सृष्टि में गति लाती हैं, शक्ति और उनकी सहचरी ये भैरवियाँ। इसे एक उदाहरण द्वारा समझो। कुछ लड़के कॉलेज कैम्पस में बैठे हुए हैं, धीरे-धीरे किसी विषय पर बातचीत हो रही है, कोई स्फुरण नहीं। लेकिन ज्योंहि कोई खुबसुरत या बदसूरत लड़की बीच से गुजरी, कमेंट पास होना चालू हो जाता है। दिल लेने से लेकर दिल छिनने की बात तक होती है। बस यही है, श्री भैरवी उत्पीड़न। तुम्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचने देगी ही नहीं, उलझा कर रख देंगी। उलझाना ही इनका काम है, क्योंकि इसी से महाशक्ति की पवित्रता बनी रहती है, शक्ति का अतिक्रमण होने से बच जाता है।
आज लोग कहते हैं, कि नारी उत्पीड़न हो रहा है। पुरूष स्त्रियों पर अत्याचार करते हैं। नारी उत्पीड़न पर अनेक कानून बन गए हैं। महिला आयोग, घरेलू हिंसा अधिनियम, छेड़-छाड़ अधिनियम इत्यादि बन गए हैं। पर मैं कहता हूँ जितना पुरूष किसी स्त्री का उत्पीड़न नहीं करता, उतना एक स्त्री हर क्षण पुरूषों का षोषण करती है। पुरूष के पास शारीरिक बल है। सौ सुनार की एक लुहार की। क्रोधित हो पुरूष हाथ उठा देता है। और यहाँ भी पुरूष जीतता नहीं। मार खाता है, जेल जाता है। अपने व्यंग्य बाणों द्वारा पुरूषों पर कटाक्ष, कुछ न कुछ मांगते रहने की प्रवृति, अगर कोई युवक किसी युवती के खुबसुरती की तारीफ न करे तो उसे ये नामर्द कह देती हैं, और अगर कोई चांद का टुकड़ा कहे, तो छेड़खानी करने का आरोप। अगर पति बेचारा किसी बाहरी स्त्री के ऊपर आंख उठा के भी न देखे, पत्नी की सहेलियों से बातचीत भी न करे तो पत्नी ताना देती है, क्योंजी तुममें स्मार्टनेस जरा भी नहीं, मेरी सहेलियाँ बुरा मान गईं और जब पति बेचारा किसी सहेली से बात-चीत कर लेता है, तो उसे कुत्ता करार दिया जाता है। अगर पुरूष विरागी प्रवृति का है, सेक्स में विशेष रूचि नहीं है तो स्त्रियाँ उन्हें नामर्द कहती हैं, कमर में ताकत नहीं है, एक बच्चा नहीं दे सकते और जब पुरूष कामुक प्रवृति का हो तो ये पशुओं की तरह सेक्स करता है, इसे और कोई काम नहीं है इत्यादि का आरोप लगा कर मुकदमा दायर कर देती हैं। घरों में पति के बाहर से आते ही समस्याओं का रोना शुरू, लंबी लिस्ट पकड़ा दी जाती है। शिकायतों का दौर शुरू इत्यादि।


और इसकी परिणति होती है, गृह क्लेश, तलाक मार-पीट, हत्या एवं आत्महत्या के रूप में। इन सबके पीछे भी भैरवियाँ हैं। इन भैरवियों को त्रिपुरसुन्दरी की रथवाहिनी कहा गया है। अर्थात् इनके मण्डल को पार किए बिना व्यक्ति त्रिपुर सुन्दरी तक पहुंच ही नहीं सकता। प्रत्येक आध्यात्मिक व्यक्तियों को घोर भैरवी उत्पीड़न झेलनी पड़ती है। तब कहीं बचा तो सोना तप कर कुन्दन बनता है। भैरवियाँ न जाने कब किस पर क्रियाशील हो जायें, कुछ कहा नहीं जा सकता। भैरवियां रक्त पिपासु हैं, असंतुष्ट हैं। जिस दिन कोई स्त्री परम संतुष्ट हुई, उस दिन से भैरवी उत्पीड़न समाप्त। भैरवी चल गई सीता पर और हठ कर बैठी स्वर्ण मृग के लिए। और दो सभ्यताओं का महान् युद्ध हुआ, केवल एक भैरवी सीता के लिए। लहू लेकर ही मानी। इन भैरवियों ने रावण को उलझा दिया, महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ सबको उलझा दिया। रावण शिव का शिष्य होकर भी स्त्रियों में उलझा रह गया।
महिषासुर परमब्रह्म को प्राप्त कर सकता था, किंतु शक्ति की सुन्दरता में उलझ कर रह गया और घोर विनाश को प्राप्त हुआ। जब-जब किसी स्त्री पर अत्याचार हुआ, भैरवियाँ चल ही जाती हैं। कभी-कभी इसके सकारात्मक पहलू आते हैं, तो कभी नकारात्मक। दुर्योधन एवं दुःशासन ने द्रौपदी का अपमान किया और परिणति महाभारत युद्ध के रूप में हुई। दुःशासन के रक्त से द्रोपदी ने अपने केश बांधे। और इसके मूल में भी द्रोपदी रूपी भैरवी का कटाक्ष था - अंधे का बेटा अंधा।
मुझे एक बात समझ में नहीं आती - वो है कानून का पक्षपात। पंचायतों का कानून एवं पुराने मजहबी कानून में किसी भी स्त्री को मर्द से ज्यादा गुनाहगार माना जाता है। स्त्रियों की सजा अलग और पुरूषों के लिए सजा अलग। और आधुनिक कानून भी कोई कम पक्षपाती नहीं। अगर कोई पुरूष किसी स्त्री को पीट रहा होता है, तो उसे जालिम कहा जाता है, और कोई स्त्री अगर किसी मर्द को पीटे तो भी यह कहा जाता है कि मर्द की ही गलती होगी।
आज चारों तरफ स्त्री-पुरूषों के संबंधों को लेकर घोर हाहाकार मचा हुआ है। पुरूष सौन्दर्य प्राप्ति के चक्कर में बदसुरती पाते जा रहा है। और स्त्रियाँ सुख-चैन की जिंदगी बसर करने के सपने में दहेज उत्पीड़न एवं घरेलू हिंसा की शिकार। आज वह समय आ गया है कि पति से काम नहीं चलेगा, परमपति को प्राप्त करना ही होगा। यह तो हुई सांसारिक बात। लेकिन आध्यात्म में उन्नति के लिए भैरवी उत्पीड़न आवश्यक है। ये भैरवियाँ ठोक-बजा कर देख लेती हैं, साधक को, क्या यह वास्तव में परम मोक्ष मार्ग का अधिकारी है? क्या यह वास्तव में परमशिव अथवा माता महात्रिपुरसुन्दरी तक पहुंचने के योग्य है? तुलसीदास एवं कालीदास को तो उनकी पत्नी ने ही ठोकर मारा। तुलसीदास की भला क्या गलती थी। अपनी पत्नी रत्नावली के ही प्रेम में तो खोया था, किसी बाहरी औरत के पीछे तो नहीं। वैसे भी जिस धरती पर कभी बारिष की एक बूंद भी न पड़ी हो, वह पानी के एक बूंद से ही तृप्त हो जाती है। लेकिन उसने घोर प्रताड़ित किया अपने पति को। फिर उसके बाद क्या हुआ, सारा संसार जानता है। उनका वैवाहिक जीवन बिखर गया। लेकिन तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस जैसा महान् कालजयी ग्रंथ सारे संसार को प्राप्त हुआ।


इसी प्रकार कालीदास को भी घोर उत्पीड़न हुआ, अपनी पत्नी से। मूर्ख कहकर उन्हें भगा दिया। एक बात प्राचीन काल से अब तक देख रहा हूँ। अगर स्त्रियाँ अपने पति से थोड़ा ज्यादा पढ़ लिख लेती हैं, तो अपने पति को कुछ समझती ही नहीं। पति अगर कमाता है, तो ये उसका कर्तव्य है, और स्त्री अगर कमाने निकलती है, तो पति की विवशता। खैर पत्नी से उत्पीड़ित कालीदास भैरवियों की महाभैरवी आद्याशक्ति माता महाकाली की शरण में पहुंचे। और काली का वरद हस्त पड़ते ही वे कालीदास हो गए और संस्कृत के अति उच्चकोटि के अभिज्ञान शाकुन्तलम्, रघुवंशम्, मेघदूतम्, कुमारसंभवम् जैसे महाकाव्यों का निर्माण कर दिया। लेकिन कितने व्यक्ति तुलसीदास या कालीदास होते हैं। सामान्य व्यक्ति तो कोर्ट-कचहरी, जेल-पुलिस इत्यादि में उलझ कर रह जाता है।
इन भैरवियों ने तो साक्षात् जगदम्बा को भी नहीं छोड़ा। भगवती पार्वती मानसरोवर के पवित्र जल में स्नान कर रहीं थीं। ऋतु स्नान के पश्चात् वे परमशिव से मिलन की इच्छा में थी। किंतु उनकी सहचरी जया-विजया ने भूख-भूख चिल्लाना शुरू कर दिया - माँ हमें भूख लगी है। ये भैरवियाँ ताना मारती हैं। आपकी जींदगी में भी कोई न कोई ताना मारता ही होगा। इन्होंने कहा - साक्षात् जगदम्बा, अन्नपूर्णा की सहेलियाँ होकर भी हम भूखी हैं, जो सारे संसार का भरण-पोषण करती हैं, वे ही महादेवी हम लोगों को तृप्त नहीं कर सकती। बस आदिशक्ति महामाया को क्रोध ही नहीं बल्कि महाक्रोध आ गया, और खड्ग से अपना ही सिर काट लिया।

उनके गर्दन से रक्त की तीन धारायें प्रवाहित होने लगीं और वे दोनों भैरवियाँ रक्त पान कर के ही मानीं। इस प्रकार संसार में प्रथम भैरवियों की उत्पत्ति हुई। इस प्रकार छिन्नमस्तिका देवी की उत्पत्ति हुई और सखियाँ डाकिनी एवं शाकिनी कहलाईं। आखिर इस भैरवी उत्पीड़न की रचना शिव एवं शक्ति ने क्यों कि यह मेरे दिमाग से बाहर की बात हैकिंतु इससे मुक्ति का उपाय बता सकता हूँ। आखिर इन भैरवियों ने तो सर्वप्रथम कैलाश में ही तो उत्पात मचाया। देवी उमा को दक्ष प्रजापति के यहाँ यज्ञ का समाचार सुनाकर और यज्ञ देखने की जीद करने को कहकर। और इसका परिणाम अत्यंत भयंकर हुआ, सारा संसार जानता है। इन भैरवियों ने शिव से उत्पन्न अयोनिज नवनाथों को भी न छोड़ा।

घोर उत्पीड़न हुआ इन्हें। मत्स्येन्द्रनाथ तो त्रिया चरित्र में ही उलझ कर रह गए, कनीफानाथ को नौकर बनना पड़ा। जालंधरनाथ को हाथ-पांव कटवाना पड़ा। ले-देकर एक मात्र गोरखनाथ ही पक्के निकले एवं वास्तव में परम शिवत्व को प्राप्त हुए। खैर इस कथा को यहाँ विस्तार नहीं करूंगा। यह कहानी सारा संसार जानता है। लेकिन एक बात इस कहानी से मुझे आध्यात्मिक लोगों की समझ में आ गई - भैरवी उत्पीड़न का। वह है एकांगीपन। कोई व्यक्ति शिवत्व के चक्कर में पड़ता है, तो कोई घोर शक्तिवादी। और जब-जब शिव से शक्ति विलग होगी, उनमें मतभेद होगा और ये भैरवियाँ चलेंगी ही, धूमावती, काली, एवं छिन्नमस्तिका की उत्पत्ति होगी ही और घोर रक्त बहेगा।


नवनाथ शक्ति की उपेक्षा करते थे, परम शैवमार्गी थे, तो वहीं गणेश परम शक्ति उपासक एवं अनजाने में ही शिवद्रोही। परिणाम वही हुआ, मुण्डमाला धारिणि ये भैरवियाँ चल हीं गईं और घोर रक्तपात हुआ। और इस भैरवी उत्पीड़न से मुक्ति पाने का एक ही रास्ता है, शिव एवं शक्ति को समान महत्व देना। यह बातें वह अभिषेक कह रहा है, जिसने घोर भैरवी उत्पीड़न झेला है।
स्त्री एवं पुरूष एक ही गाड़ी के दो पहिए हैं, जिनमें दोनों का समान महत्व है। पुरूष स्त्री को भोग-विलास का साधन समझना बंद करे एवं स्त्री पुरूषों को पैसा खींचने का मशीन समझना बंद करे। तभी यह भैरवी उत्पीड़न रूक सकता है।
जब भी कोई साधक आध्यात्म की ऊँचाइयों पर पहुंचने लगता है, ये भैरवियाँ उसकी घोर परीक्षा लेती हैं। यूँ ही किसी को शिवत्व, ब्रह्मत्व या बुद्धत्व या परम निवार्ण मार्ग नहीं प्रदान किया जाता। जब भगवान बुद्ध बुद्धत्व प्राप्ति की ओर अग्रसर थे, तो न जाने कितने लालच दिए गए, कितने भय उपस्थित किए गए। अप्सरायें आईं, भूत-पिशाच आए, सारे विश्व का एकछत्र सम्राट बनने का लालच एवं इन्द्रत्व प्राप्ति का लालच, परंतु बुद्ध कहीं उलझे नहीं। आखिर वे महाशास्ता थे, बुद्धत्व प्राप्ति करने पर ही माने।

इन भैरवियों के माया चक्र में तो बड़े-बड़े आश्रम धराशायी हो जाते हैं। ब्रह्मचर्य की नींव पर बने महल में वासना के दिए जलने लगते हैं। आखिर क्या हुआ, कालांतर में बौद्ध मठों में? 85 वर्ष की अवस्था में तथाकथित जगद्गुरू कृपालु जी महाराज 22 वर्ष की युवती के साथ विदेश में छेड़खानी करते हुए पकड़े जाते हैं। एक बात स्पष्ट जान लो कि जवानी का ब्रह्मचर्य बुढ़ापे का रोग है। जो व्यक्ति जवानी में रूप-जाल में नहीं फंसता, काम को वश में करता है, वह बुढ़ापे में सेवा की राह में जरूर फिसल जाता है।

मैंने ऊपर भैरवी उत्पीड़न से बचने का सांसारिक ऊपाय तो बता दिया, लेकिन क्या इसका कोई प्रायोगिक पहलू भी है। हाँ है, वह है शिव एवं शक्ति को अपने जीवन में समान महत्व देना, उनकी उपासना एवं त्रिपुर भैरवी की अराधना। इस भैरवी उत्पीड़न से मुक्ति का एकमात्र रास्ता है श्री त्रिपुर भैरवी की तांत्रोक्त अराधना एवं भैरव्यास्त्र। लोग श्रीयंत्र की रट लगाये रहते हैं, त्रिपुरसुन्दरी को ग्राम देवी समझ बैठे हैं। जाओ बाजार से एक श्रीयंत्र रूपी तांबे या स्फटिक का टुकड़ा खरीद लो। लेकिन यह मत भूलो कि तुम्हारे एवं त्रिपुरसुन्दरी के बीच उनकी रथवाहिका के रूप में रास्ता रोके खड़ीं हैं - श्री त्रिपुर भैरवी। पीछे के पृष्ठो में मैंने श्री त्रिपुर भैरवी का सामान्य ध्यान लिखा, जो कि दुर्गा सप्तशती से उद्धृत है। यहाँ उनका विशेष तांत्रोक्त ध्यान लिख रहा हूँ। किसी भी दुर्गा प्रतिमा या त्रिपुर भैरवी यंत्र पर पढ़ते हुए कुछ लाल पुष्प विषेशकर गुलाब के फूल चढ़ा देना, भैरवी उत्पीड़न से मुक्ति का रास्ता मिल जाएगा। सुगन्धित इत्र बेला, गुलाब या चमेली का भी साथ में चढ़ा देना।
तांत्रोक्त श्री त्रिपुर भैरवी ध्यान

हं हं हं हंस हंसी स्मित कह कह चामुक्त घोर अट्टहासा।
खं खं खं खड्गहस्ते त्रिभुवन निलये कालभैरवी कालधारी।।
रं  रं  रं  रंगरंगी  प्रमुदित  वदने  पिर्घैंकेषी  श्मशाने।
यं  रं  लं  तापनीये  भ्रकुटि  घट  घटाटोप,  टंकार जापे।।
हं हं हंकारनादं नर पिषितमुखी संधिनी साध्रदेवी।
ह्रीं ह्रीं ह्रीं कुष्माण्ड मुण्डी वर वर ज्वालिनी पिंगकेषी कृषांगी।।
खं खं खं भूत नाथे किलि किलि किलिके एहि एहि प्रचण्डे।
ह्रुम ह्रुम ह्रुम भूतनाथे सुर गण नमिते मातरम्बे नमस्ते।।
भां भां भां भावैर्भय हन हनितं भुक्ति मुक्ति प्रदात्री।
भीं भीं भीं भीमकाक्षिर्गुण गुणित गुहावास भोगी सभोगी।।
भूं भूं भूं भूमिकम्पे प्रलय च निरते तारयन्तं स्व नेत्रे।
भें भें भें भेदनीये हरतु मम भयं भैरव्ये त्वां नमस्ते।।
हां हां हाकिनी स्वरूपिणी भैरवी क्षेत्रपालिनी।
कां कां कां कानिनी स्वरूपा भैरवी व्याधिनाशिनी।।
रां रां रां राकिनी  स्वरूपा भैरवी शत्रुमर्द्दिनी।
लां लां लां लाकिनी स्वरूपा भैरवी दुःख दारिद्रनाषिनी।।
भैं भैं भैं भ्रदकालिके क्रूर ग्रह बाधा निवारिणी।
फ्रैं फ्रैं फ्रैं नवनाथात्मिके गूढ़ ज्ञानप्रदायिनि।।
ईं ईं ईं रूद्रभैरवी स्वरूपा रूद्रग्रंथिभेदिनि।
उं उं उं विश्णुवामांगे स्थिता विष्णु ग्रंथि भेदिनी।
च्लूं च्लूं च्लूं  नीलपताके सर्वसिद्धि प्रदायिनी ।
अं अं अं अंतरिक्षे सर्वदानव ग्रह बंधिनी।।
स्त्रां स्त्रां स्त्रां सप्तकोटि स्वरूपा आदिव्याधि त्रोटिनी।
क्रों क्रों क्रों कुरूकुल्ले दुष्ट प्रयोगान नाशिनी।।
ह्रीं ह्रीं ह्रीं अंबिके भोग मोक्ष प्रदायिनी।
क्लीं क्लीं क्लीं कामुके कामसिद्धि दायिनी।।

एक बार मैं अपने गुरूदेव के शिविर से लौट रहा था (वर्ष २००५ में)। गुरूदेव जी से मैंने अपने कालसर्प योग के निवारण हेतु प्रार्थना की थी। गुरूदेव जी ने एक शिवपूजन करवा कर कहा था जाओ हो गया कालसर्प येग निवारण। गुरू की बातों पर मुझे शंका नहीं थी। जब महागुरू ने कह दिया तो हो गया निवारण, तो बस हो गया निवारण।
लेकिन कालसर्प योग क्या है, इस बात पर ट्रेन पर बैठा-बैठा घोर मंथन कर रहा था। गुरूदेव जी ने कालसर्प योग के आध्यात्मिक पहलू पर लिखा था, किंतु मैं सांसारिक पहलू पर भी ध्यान दे रहा था। सोच रहा था कितने व्यक्ति वास्तविक आध्यात्म को समझ पायेंगे। अचानक मेरे सामने की सीट पर दो कम ऊम्र की लड़कियाँ आ कर बैठ गईं। वे दोनों बहनें थीं एवं दूसरे तरफ की सीट पर अपने परिवार के साथ यात्रा कर रहीं थीं। उन दोनों के मन में न जाने क्या आया, मुझसे इधर-उधर की बातें करने लगीं। मैं भी अकेला यात्रा करते-करते बोर हो गया था। आध्यात्म की कठिन बातों को सोचते-सोचते मन शायद थक रहा था।
एक 9वी की छात्रा थी, दूसरी 10वी की। दोनों ने जींस पैंट एवं बिना बांह का शर्ट पहन रखा था। सोचा कि शायद इनसे बातें कर के कुछ मन बहल जाए। लेकिन वे दोनों ज्ञान में, शिक्षा में, ऊम्र में मुझसे बहुत छोटी थीं। मैं अपने वास्तविक ऊम्र से देखने में बहुत ही कम लगता हूँ। शायद इसलिए उन्होंने सोचा था कि मैं मैट्रिक या इन्टर का लड़का होंऊंगा। लेकिन मेरे मन पर एक ओर परम भैरवी उत्पीड़न था, तो दूसरी ओर गुरूदेव का परम आध्यात्मिक ज्ञान, जिसके लिए मन में आत्मप्रेरणा थी, संसार के लिए सरलीकरण करने की। और इन दोनों बातों के रहते किसी भी तीसरी बात के लिए मेरे दिल में उस समय कोई जगह नहीं थी। शीघ्र ही उनकी बातों से मैं बोर हो गया और पुनः कालसर्प योग के बारे में सोंचने लगा। क्या है, कालसर्प योग की सांसारिक पहचान एवं इनसे कैसे बचा जा सकता है? अचानक उन दोनों लड़कियों पर पुनः ध्यान चला गया। उनके बाल खुले थे। ट्रेन में हवा के झोंके से उनके बाल लहरा रहे थे। बस समझ में आ गया, यही तो पुरूषो के लिए कालसर्प योग। स्त्री के जुल्फों में बाहुपाश में, मोहक मुस्कान में जकड़ जाना एवं स्त्री के लिए कालसर्प योग है, पुरूषो के मजबूत बाहुपाश का सहारा लेना। बस चलते-चलते इस अभिषेक को कालसर्प योग एवं भैरवी उत्पीड़न के बारे में महाज्ञान प्राप्त हो गया। भगवती बाला ने पुनः अपने इस भक्त को 16 वर्षीय कन्या के रूप में आकर संभाल लिया, ज्ञान प्रदान कर दिया। जिस प्रकार से कभी बुद्ध को, शंकराचार्य को, दत्तात्रेय को, श्रीकृष्ण को उन्होंने सहारा प्रदान किया था। आखिर भैरवी शक्तियाँ चलती भी हैं, उस तांत्रोक्त शिवलिंग के माध्यम से ही, जिनमें सर्प शिव के ऊपर न होकर जलहरी के पास आ जाता है और जिस पर भैरवी प्रयोग किया जाता है, वह घोर व्याधि को प्राप्त होता है। अब इस अभिषेक के लिए स्त्री देह न ही कोई आकर्षण की वस्तु रही और न ही त्याग की। बस यहीं पर मेरा भैरवी उत्पीड़न सदा-सदा के लिए समाप्त हो गया।
आमतौर पर लोग किसी भी क्षेत्र में कामयाब पुरूष के पीछे एक स्त्री का हाथ बताते हैं। मैं भी उनसे अछूता नहीं हूँ। और वो स्त्री है - मुझे जन्म देने वाली एवं पालन-पोषण करने वाली माँ एवं आद्याशक्ति महामाया माँ भगवती महाकाली।
वैसे भी मेरे आत्मिक प्रेम को मेरी कमजोरी समझ लिया गया था। बस यहीं इन पर भैरवियों ने भयंकर भूल कर दी, अभिषेक को समझने में।

अब भैरवी उत्पीड़न का यह अध्याय मेरी जींदगी से सदा-सदा के लिए समाप्त हुआ। अगर गुरूदेव एवं माँ जगदम्बा की कृपा बनी रही तो।
इसके साथ ही समस्त 64 भैरवियों को प्रणाम करता हूँ, एवं अपने जाने-अनजाने में हुई समस्त गलतियों के लिए क्षमा मांगता हूँ। बस बालक को सहारा देते रहना। यहाँ मैं नीचे तंत्र मार्ग की ६४ प्रमुख भैरवियो का वर्णन कर रहा हूँ. वैसे विभिन्न देवियों के साथ अलग-अलग भैरवियाँ चलती हैं, लेकिन नीचे वर्णित भैरवियाँ लगभग सभी के साथ रहती है. ये देवी दुर्गा के साथ रहने वाली हैं.

तंत्र मार्ग में 64 प्रमुख भैरवियाँ


1.      असितांग भैरवी
2.      विशालाक्षी भैरवी
3.      मार्तण्ड भैरवी
4.      मोदकप्रिया भैरवी
5.      स्वच्छन्दा भैरवी
6.      विध्नसंतुष्टा भैरवी
7.      खेचरी मुद्रा सिद्ध भैरवी
8.      सहचराचरी भैरवी
9.      रूरू भैरवी
10.    कोडदंश्ट्रा भैरवी
11.    जटाधरा भैरवी
12.    विश्वरूपा भैरवी
13.    विरूपाक्षी भैरवी
14.    नानारूपधरी भैरवी
15.    पर भैरवी
16.    वज्रहस्ता भैरवी
17.    महाकाया भैरवी
18.    चण्ड भैरवी
19.    प्रलयान्तक भैरवी
20.    भूमिकम्पना भैरवी
21.    नीलकण्ठा भैरवी
22.    विष्णु भैरवी
23.    कुलपालिनी भैरवी
24.    मुण्डपाल भैरवी
25.    कामपाल भैरवी
26.    क्रोध भैरवी
27.    पिंगलेक्षणा भैरवी
28.    अभ्ररूपा भैरवी
29.    धरापालिनी भैरवी
30.    कुटिला भैरवी
31.    मंत्रनायिका भैरवी
32.    रूद्र भैरवी
33.    पितामह भैरवी
34.    उन्मत्ता भैरवी
35.    बटुनायिका भैरवी
36.    शंकर भैरवी
37.    भूत वेताल भैरवी
38.    त्रिनेत्रा भैरवी
39.    त्रिपुरानतका भैरवी
40.    वरदा भैरवी
41.    पर्वतावासिनी भैरवी
42.    कपाली भैरवी
43.    शशिभूषणा भैरवी
44.    हस्तिचर्माम्बर धारिणी भैरवी
45.    योगीश भैरवी
46.    ब्रह्मराक्षसी भैरवी
47.    सर्वज्ञा भैरवी
48.    सर्वदेवेश भैरवी
49.    सर्वभूतहृदिस्थिता भैरवी
50.    भीषणा भैरवी
51.    भयहर भैरवी
52.    सर्वज्ञा भैरवी
53.    कालाग्नि भैरवी
54.    महारौद्रा भैरवी
55.    दक्षिणा भैरवी
56.    मुखरा भैरवी
57.    अस्थिरा भैरवी
58.    संहार भैरवी
59.    अतिरक्तांगी भैरवी
60.    कालाग्नि भैरवी
61.    प्रियंकरा भैरवी
62.    घोरनादिनी भैरवी
63.    विशालाक्षी भैरवी
64.    दक्षसंस्थिता योगीश भैरवी


 यंत्र प्रयोग

भैरवी उत्पीड़न के मूल में स्त्रियाँ हैं। स्त्रियों में लिप्तता, प्रेम, नफरत इत्यादि ही भैरवी उत्पीड़न का मूल है। यह साधना उन लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो कि किसी स्त्री द्वारा दुर्भावना पूर्ण तरीके से किसी गलत मामले में फंसा दिए गए हों या फिर उनकी पत्नी या प्रेमिका सदैव एक विरोधिनी शक्ति बनकर विध्वंस करने पर उतारू हो। पहले तो स्त्रियाँ हाथ फैलाकर सहारा मांगती हैं, प्रेम की भिक्षा मांगती हैं, और जब सहारा दो तो नागिन बनकर डंसने भी लगती हैं। शूर्पनखा ने यही तो राम के साथ किया।
सर्वप्रथम लाल चंदन और सिन्दूर को घोलकर भोजपत्र के ऊपर इस दिए गए यंत्र का निर्माण गुरूवार के दिन करें। यंत्र को लाल कपड़े के ऊपर स्थापित कर त्रिकोण के ऊपर एक नौमुखी रूद्राक्ष स्थापित करें एवं रूद्राक्ष माला से हसैं हस्री हसौंमंत्र का 21,000 बार जप करें एवं दशांश हवन इत्यादि करें। इसके पश्चात् यंत्र को जल में प्रवाहित कर दें एवं रूद्राक्ष को गले में धारण कर लें। परिस्थितियाँ साधक के अनुकूल हो जायेंगी। जो कल तक नागिन बन कर पीछे पड़ी हुई थी, वही अब पांवों में गिरकर दया, क्षमा एवं प्रेम की भीख मांगने लगेगी और आपकी सहयोगी हो जाएगी।

दूसरा प्रयोग - जिन साधकों को जन्म से ही स्त्रियों के कारण घोर कष्ट झेलने पड़ रहे हैं, उन्हें 11 मुखी रूद्राक्ष को संस्कारित कर गले में धारण कर लेना चाहिए। इसके पष्चात् महाकालाय स्वाहामंत्र का निरंतर जप करते रहना चाहिए। आने वाले समय में कष्ट के विपरीत स्त्री जाति से अभूतपूर्व सहयोग मिलेगा। लगभग 51 हजार मंत्र जप पूर्ण होते ही चमत्कारिक लाभ किसी स्त्री द्वारा साधक को प्राप्त होने लगता है।
नोटः- इस पुस्तक/आलेख के अगले संस्करण में इस मानसिक दुराचारिता के ज्योतिषीय पहलू पर चर्चा करूंगा।











लेखक :- श्री अभिषेक कुमार, मंत्र, तंत्र, यन्त्र विशेषज्ञ, शक्ति सिद्धांत के व्याख्याता, दस महाविद्याओं के सिद्ध साधक, श्री यन्त्र और दुर्गा सप्तशती के विशेषज्ञ, ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री.
Mob:- 9852208378,  9525719407  

मिलने का वर्तमान पता:-
पुष्यमित्र कॉलोनी, संपतचक बाजार
(गोपालपुर थाना और केनरा बैंक के बीच/बगल वाली गली में)
इलेक्ट्रिक पोल नंबर-6 के पास
पोस्ट-सोनागोपालपुर, थाना-गोपालपुर
संपतचक, पटना-7
नोट:-संपतचक बाजार, अगमकुआँ में स्थित शीतला माता के मंदिर से लगभग 8 किमी॰ दक्षिण में स्थित है। नेशनल हाईवे - 30 के दक्षिण में एक रोड गयी है, जो पटना-गया मेन रोड के नाम से जाना जाता है। इस रोड पर ही बैरिया बस स्टैण्ड है। इसी बस स्टैण्ड के दक्षिण संपतचक बाजार स्थित है। यहीं केनरा बैंक के ठीक बगल वाली गली में मेरा मकान है। जहाँ आप सभी धर्मप्रेमी भक्तजन/जिज्ञासु समय लेकर मुझसे कभी भी मिल सकते हैं।

 
 
लेखक :- श्री अभिषेक कुमार, मंत्र, तंत्र, यन्त्र विशेषज्ञ, शक्ति सिद्धांत के व्याख्याता, दस महाविद्याओं के सिद्ध साधक, श्री यन्त्र और दुर्गा सप्तसती के विशेषज्ञ, ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री.
Mob:- 9852208378,  9525719407  

मिलने का पता:-
नून का चैराहा, पटना सिटी, पटना-800008 (Noon Ka Chauraha, Patna City, Patna-800008)
नोट:- नून का चैराहा मुहल्ला (अभिषेक जी का निवास स्थान), पटना साहिब स्टेशन से 1 किमी॰ पश्चिम एवं गुलजारबाग स्टेशन से 1 किमी॰ पूर्व में स्थित है। पटना साहिब से अगमकुआँ तक जो मुख्य मार्ग गई है, जिसे पुराना बाईपास भी कहते हैं और जिसका नाम सुदर्शन पथ है, उसी सुदर्शन पथ पर मुख्य मार्ग पर ही नून का चैराहा अवस्थित है।


 

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