ईश्वर की अनुभूति 

पश्चिम के किसी विद्वान ने ईश्वर को परिभाषित करते हुए कहा है :God is all pervading intelligent energy... अर्थात् सर्वव्यापी चेतन सत्ता को ईश्वर कहते हैं। ईश्वर है कि नहीं है, इस विवाद में पड़े बिना यह कह सकते हैं कि जो समझ से समझे उसके लिए है, जिसे जो प्रतिवाद करने की जल्दबाजी का शौक रखता हो उसके लिए नहीं है। जिसके लिए है उसे एक बात समझ लेनी चाहिए कि वह उसे देख कभी नहीं सकेगा और न उसको झप्फी में भर सकेगा क्योंकि वह सूक्ष्मतम होने से आंखों का विषय नहीं अनुभूति का विषय है। उसकी अनुभूति उसकी रचना में और रचना में व्याप्त अटल नियमों में संभव है अन्यथा एवं अन्यत्र नहीं। उसकी अनुभूति के लिए सरलतम होना होना होगा, एकदम आडंबरविहीन। उसकी रचना पर यदि हम अपने मन के आडंबर की पॉलिस करेंगे तो वह तिरोहित हो जाएगी और हमारी उजागर इस तरह हम अपनी विकृत को अपनी मान कर भटकते चले जाएंगे। इसी भटकन को पाखंड का नाम दिया है। यानि आडंबर पाखंड की जननी है और सरलता सहजता वास्तविक की पोषक और उद्घाटक।
कहते हैं :if you want to love a lady, love her child. अगर आप परमात्मा से निकटता स्थापित करना चाहते हैं तो उसकी प्रकृति को समझ कर इसके नियमानुसार अपना आचरण बनाना होगा। भगत वह है जो इन नियमों के विपरीत न सोच रखता है और न आचरण। इन नियमों की अवहेलना ही पाखंड है जो समाज का सबसे घातक शत्रु है। आडंबर मानसिकता को निगलता है तो आडंबर आत्मा का हनन करता है। प्रेम का मूल प्रकृति के साथ ज्ञानपूर्वक संवाद स्थापित करने में निहित है। समुद्र के किनारे एकांत में अकेले बैठ कर देखो भावविभोर हुए बिना न रहोगे। दुर्गम घाटियां चूमने लगेंगी। मखमली रेगिस्तान स्वागत करता दिखाई देगा। यानी कण कण में स्वयं के दर्शन और स्वयं में कण कण की अनुभूति, यही तो है परमात्मा। यही तो है उसकी भक्ति।.....

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