Hindu Dharm : हिन्दू धर्म की महिमा

।। ॐ नमश्चण्डिकायै।।

।। या देवि सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।।
आओ हम विश्व के सबसे महान एवं प्राचीन धर्म सत्य सनातन हिन्दु धर्म में सम्मिलित हों।
मित्रों,
      विश्व में सनातन धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है, जो एकांगी न होकर बहुरंगी है। इसमें जीवन का हर रंग है। यह परमेश्वर के किसी एक स्वरुप में न अटककर उनके सभी स्वरुप की व्याख्या करता है। इस धर्म को चलाने वाला कोई तथाकथित ईश्वर का पुत्र, गुरू, ज्ञानी मानव या देवदूत या पैगम्बर न होकर स्वयं ईश्वर द्वारा रचित है। यह धर्म प्रकृति के प्रत्येक तत्व में ईश्वर के दर्शन करता है। इस सनातन धर्म में धर्म के नाम पर कोई अंर्तकलह नहीं है। जबकि विश्व के अन्य सभी धर्म स्वयं अपनी धार्मिक मान्यताओं के आधार पर अंर्तकलह से ग्रसित हैं।
इस्लाम में शिया-सुन्नी विवाद, क्रिष्चियन (इसाइयों) में कैथोलिक एवं प्रोटेस्टेंट मान्यताओं के आधार पर विवाद तथा बौद्धों में हीनयान, महायान एवं वज्रयान उपासना पद्धति के आधार पर विवाद जग-जाहिर है।
 वर्तमान में सिक्ख धर्म में अकाल तख्त एवं डेरा सच्चा सौदा का विवाद केवल मान्यताओं के आधार पर हिंसक स्वरूप ग्रहण करता जा रहा है। हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए निर्मित सिक्ख धर्म आज खुद अनेक भागों में विभाजित है। कोई अकाली सिक्ख है, तो कोई नामधारी, कोई मुण्डा इत्यादि। देहधारी गुरू हो या ना हो, इसी विवाद में अटके हुए हैं। जब शरीर में ही अटके रहोगे, शरीर से ही मोह नहीं छूटेगा, परमेश्वर को कहाँ से प्राप्त कर पाओगे।
बौद्ध धर्म आज भटक चुका है। इसका वज्रयान समुदाय तंत्र-मंत्र एवं कर्मकाण्ड तथा हिन्दु देवी देवता को पूरी तरह अपना चुका है, जिसका बुद्ध ने स्वयं विरोध किया था और अन्य लोग अम्बेडकरवाद से ग्रसित हो गए हैं। भारत के सभी दलितों को बौद्ध धर्म में दीक्षित करना ही इनका एकमात्र उद्देश्य रह गया है और न जाने ये कौन-सा सुख दिला देंगे। जैन धर्म तो धर्म की इतनी अव्यावहारिक व्याख्या करता है कि इनके अनुसार कृषि कर्म भी पाप है, त्याज्य है। क्योंकि कृषि करने से कुछ कीड़े मरते हैं। भूखे रहोगे तो जीओगे कैसे? भूख से शरीर सुखा लेने को ये मुक्ति का मार्ग समझते हैं। इस्लाम की कट्टरता जगजाहिर है। जो इनके कुरआन को नहीं मानता है, वह काफिर है, अर्थात् ईश्वर से हीन है, गुनाहगार है और उन्हें मार देने से इन्हें जन्नत प्राप्त होती है। स्त्रियों का शोषण जबरदस्त है इसमें और ये जहाँ भी गए वहाँ आतंक ही फैला एवं भयंकर रक्तपात हुआ।
इसाइयों के अनुसार ईसामसीह ने जगत के सारे पाप क्षमा करने का ठेका ले रखा है। तो ठीक है, कुछ हत्या वगैरह करके इसाई बन जाओ। जब परमेश्वर की अदालत में दंड नहीं मिलेगा, तो यहाँ की अदालत से भी दण्ड नहीं मिलना चाहिए।

जबकि इन सबसे अलग हट के हमारा सनातन धर्म ईश्वर के सभी स्वरुप में विश्वास  करता है। हमारे अनुसार ईश्वर निर्गुण भी है, तो सगुण भी। जगत् के कल्याण हेतु निर्गुण परब्रह्म ही सगुण रूप धारण करते हैं। हमने नदियों की कल-कल में, समुद्र की लहरों में, झरनों के गर्जन में, सूर्य की किरणों में, चंद्रमा की शीतल चांदनी सभी में ईश्वर के स्वरूप की झाँकी देखी है। हमारे यहाँ कोई अंतर्विरोध नहीं है। हमारा ईश्वर किसी एक किताब में सिमट के नहीं रह गया है। वह सभी के दिलों में निवास करता है। क्योंकि हमने जाना है, "हरि अनंत हरि कथा अनंता"। ईश्वर के महिमा, उसके स्वरुप को किताब के कुछ पन्नों में कैसे समेटा जा सकता है। उसकी तो हर युग में हर समय में व्याख्या होगी।  हमारे धर्म में जीवन के प्रत्येक तत्व मौजूद हैं। इसमें अगर दुर्गा की तेजस्विता है, तो काली की विकरालता, हनुमान का अतुलित बल, शौर्य एवं तेज है, तो गणपति की माता-पिता रूपी परब्रह्म के चरणों में अगाध श्रद्धा और बुद्धि, सूर्य का प्रचंड तेज है, तो चंद्रमा की शीतल  चांदनी, राम और सीता की मर्यादा तथा त्याग की प्रतिमूर्ति तो राधा-कृष्ण का प्रेम माधुर्य भी। हमने शिव की तरह समाज के दिए विष को पीना भी सिखाया है, तो गणपति की तरह आनंदपूर्ण जीवन की प्राप्ति भी। यहाँ लक्ष्मी का ममतामयी वरदायिनी स्वरूप उपस्थित है, तो बगलामुखी की तरह शत्रुओं को चूर्ण करने की भी शक्ति है। अगर यहाँ देवी उमा, सावित्री एवं अनुसूया का महान सतीत्व है, तो मदहोश करने वाला अप्सराओं का मादक सौन्दर्य भी। हमने त्रिपुरसुन्दरी के महासौन्दर्य का भी दर्शन किया है, तो गायत्री की शक्ति से ब्रह्मज्ञान भी प्राप्त किया है। हमने ही संसार को सर्वप्रथम 'सत्यमेव जयते' कहना सिखाया है। हमारे यहाँ कोई खास व्यक्ति ईश्वर पुत्र न होकर प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर का पुत्र है। यहाँ डमरू का घोर निनाद है, तो वंशी की मधुर धुन भी। यहाँ शिव का ताण्डव है, तो जगदम्बा का लास नृत्य भी। अगर हमने 'अहिंसा परमो धर्मः' का उद्घोष किया है, तो रक्तबीज और महिषासुर जैसे मानवता का परम शत्रु के रक्त का एक-एक बूंद भी पीया है। हमने अति प्राचीन काल में ही समुद्र को लांघ लिया था, तो पर्वतों की ऊँचाइया भी दुर्लंध्य नहीं। अगर हमने आत्मा के दर्षन किये हैं, तो शरीर भी त्याज्य नहीं। संसार का सबसे प्राचीन चिकित्सा शास्त्र हमने ही प्रदान किया है। निष्काम कर्म के सिद्धांत की व्याख्या सारे संसार को हमने ही सर्वप्रथम गीता के माध्यम से सिखाया था। उपनिषदों का महान आत्मदर्शन रूपी गुह्य ज्ञान प्रस्तुत किया था, तो हजार श्लोको वाला कामशास्त्र भी यहाँ ही रचा गया था।
अगर यहाँ शिव का परम ब्रह्माण्डीय ज्ञान है, तो कृष्ण के कर्म का सिद्धांत भी है। अगर हमने छिन्नमस्तिका की तरह महान आत्मोत्सर्ग एवं त्याग सिखा है, तो कामाख्या के माध्यम से कुल की रचना भी की है।

तो ऐसे महान धर्म को छोड़कर किसी अन्य धर्म के चक्कर में क्यों पड़े हैं?
तो आओ विश्व के इस सबसे महान धर्म को स्वीकार करें।

नोटः- जहाँ पर हम शब्द आया है, उसे संपूर्ण हिन्दु धर्म का द्योतक समझा जाए।
लेखक :- श्री अभिषेक कुमार 

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1 Comments

  1. बहुत अच्छे से जानकारी दी है आपने | Thanks for sharing Sacha Dharm Konsa Hai

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