Love : Prem

प्रेम (Love)


     आज के वर्तमान युग में प्रेम की व्यापक चर्चा पूरे विश्व में हो रही है। कोई इसे किसी तरह से परिभाषित करता है, तो कोई किसी तरह से। वर्तमान समय में प्रेम को किशोर  वय के लड़के-लड़कियाँ फैशन के रूप में अपना रहे हैं। लेकिन प्रेम क्या है, इसे वास्तविक रूप में जानने की कोशिश शायद किसी ने अब तक नहीं की है।
       प्रेम को अंग्रेजी में लव (Love), ऊर्दू  में मोहब्बत या इश्क कहा जाता है। हिन्दी में प्रेम के अन्य शब्दों में आसक्ति, स्नेह, प्रीत, अनुराग, प्यार इत्यादि आते हैं। साधारण शब्दों में एक-दूसरे पर आसक्ति को ही प्यार या प्रेम कहा जाता है।

 
 भगवान् सदा शिव शंकर और आदि शक्ति माता जगदम्बा : अनंत अविनाशी महाप्रेम
 
       विभिन्न विद्वानों एवं दार्शनिको ने अपने-अपने शब्दों में प्रेम को विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। कुछ कहते हैं, “आकर्षण का भाव ही प्रेम है। कुछ का कहना है, “किसी चीज से दूरी होना ही प्रेम का कारण है और इसे पाने की इच्छा करना ही प्रेम है
       लेकिन ये सभी प्रेम की पूर्ण परिभाषा नहीं कही जा सकती है। प्रेम की सही परिभाषा क्या है, इसके बारे में हम आगे विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।
       प्रेम के प्रकार :- भगवान श्री कृष्ण ने गीता में हर वस्तु के भाव के तीन गुण बताये हैं। सात्विक, राजसी और तामसी। प्रेम भी ये तीन प्रकार के होते हैं।
1.    सात्विक प्रेम :- यह उस प्रकार का प्रेम है, जिसमें वासना का भाव नहीं रहता है। इस प्रकार का प्रेम स्वतः उत्पन्न होता है तथा इसमें बदले में किसी भी प्रकार की इच्छा नहीं की जाती है। एक माँ का अपने बच्चे से या बच्चे को माँ से। एक जन्म से भगवान का भक्त होना, इत्यादि सात्विक प्रेम के प्रकार हैं।
2.    राजसी  प्रेम :- यह उस प्रकार का प्रेम है, जो एक सोची-समझी हुई योजना के तहत होती है। इसके प्रेम के सहारे जींदगी चलाने या अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए उपयोग में लाया जाता है। एक पति-पत्नी का प्रेम, किसान का अपने फसलों या पशुओं से प्रेम, किसी विद्यार्थी को अपने पुस्तकों से प्रेम, अपनी इच्छाओं की पूर्त्ति हेतु देवी-देवताओं की मन्नते मांगना इत्यादि।
3.    तामसिक प्रेम :- यह उस प्रकार का प्रेम है, जिसमें वासना प्रधानतः होती है। साथ ही हिंसा, क्रोध तथा किसी विपरीत लिंग या समलिंग के व्यक्ति से प्रेम करना तथा बाद में उसे त्याग देना इस प्रकार के प्रेम के लक्षण हैं। दो विवाहितों या किसी एक विवाहित का किसी कुँवारे से प्रेम होना। दो कुँवारों का केवल एक दूसरे के शरीर की प्राप्ति के लिए प्रेम करना तथा दूसरे की वस्तुओं से भी प्रेम ना इसी प्रकार के प्रेम के अंतर्गत आते हैं। बलात्कार तथा वेश्यावृत्ति भी इसी के अंतर्गत आते हैं।
प्रेम है क्या?
 

 पूर्ण समर्पित निश्छल महाप्रेम : भगवान् श्री राधा रमण विहारी और उनकी लीला सहचरी भगवती राधिका 

       कुछ विद्वानगण कहते हैं कि प्रेम महज एक आकर्षण है, तो कुछ कहते हैं कि यह दिल की गहराइयों से उत्पन्न एक शक्ति है। लेकिन वास्तव में यह सजीवों की कमजोरी है। उनकी एक प्रकार की भावना है और वास्तविकता यह है कि इसके अभाव में कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता है। चाहे वह प्रेम ईश्वर के प्रति हो, स्वयं के प्रति हो, माता-पिता के प्रति हो या फिर किसी प्रेमी-प्रेमिका का। प्रेम एक शक्ति/कला है, जो जीने की शक्ति/कला उत्पन्न करता है।
प्रेम का कारण :-
       अब सवाल यह उठता है कि वास्तव में प्रेम अगर इतना जरूरी है, तो यह उत्पन्न होता है, कहाँ से?
       प्रेम होने का मुख्य कारण है होने वालों में उस गुण का अभाव होना और यह अभाव आकर्षण को उत्पन्न करता है और आकर्षण के फलस्वरूप प्रेम उत्पन्न होता है। इस तथ्य को हम इस उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं -
       एक चुम्बक तथा लोहे का टुकड़ा लेते हैं। दोनों को आमने-सामने रखते हैं। देखते हैं कि दोनों टुकड़ा एक-दूसरे को आकर्षित कर लेता है और आपस में मिल जाता है। ऐसा क्यों होता है? क्यांकि चुम्बक में लोहे के गुण का अभाव है तो लोहे में चुंबक के गुण का। और दोनों में उसे आकर्षित करने की क्षमता है।
       एक और उदाहरण से हम इसे समझ सकते हैं। किसी भी चुम्बक में दो ध्रुव होते हैं। एक उत्तरी (North) तथा दूसरा दक्षिणी (South)। वैज्ञानिक यह सिद्ध कर चुके हैं कि चुम्बक का N पोल कभी भी दूसरे चुम्बक के N पोल को आकर्षित नहीं करता है। वह केवल S पोल को ही आकर्षित करने की क्षमता रखता है। अगर हम किसी दो चुम्बक के N पोल और S पोल को आमने-सामने करें तो उनमें आकर्षण उत्पन्न हो जाएगा।
       उसी प्रकार एक माँ में ममत्व होता है, तो बच्चे में कुछ पाने की इच्छा। ईश्वर में देने की शक्ति है, तो भक्त में लेने की इच्छा। एक पुरुष और स्त्री में विपरीत लिंग का अभाव होता है, जिसकी पूर्त्ति वे आपस में रति-क्रीड़ा द्वारा करते हैं। इसके अलावा और भी कई कारण हैं, जो कि एक स्त्री-पुरुष को एक-दूसरे के प्रति आकर्षित करते हैं।
       प्रेम होने या आकर्षण होने का मुख्य कारण है, उस चीज की उपस्थिति या उसके बारे में जानकारी रहना। अगर एक माँ में ममता का अभाव हो, तो बच्चा कभी भी उससे प्रेम नहीं करेगा। अगर किसी लड़की में सौंदर्य का अभाव हो, तो कोई भी व्यक्ति उसकी ओर आकर्षित नहीं होगा।

Image result for shaktianusandhankendra

 ब्रह्मांडीय महाप्रेम का अति उत्तम परिणाम : भगवान शिव और माता पार्वती की गोद में बालक गणेश 

       आकर्षण होने का कारण है, संसार में उस वस्तु या गुण की उपस्थिति। लेकिन स्वयं में उसका अभाव होना। सभी प्राणियों को अपना प्राण सबसे अधिक प्रिय होता है। प्राण उसके पास तो है, लेकिन यह उसके वश में नहीं है। इस प्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि प्रेम का मुख्य कारण है, स्वयं में उसका अभाव होना और उसकी पूर्त्ति करना ही प्रेम है।
       अब हम वर्तमान परिवेश में चलते हैं और वर्तमान की समस्या पर एक नजर डालते हैं।
       वर्तमान में एक प्रमुख समस्या है, किशोर वय के लड़के-लड़कियों में बढ़ते आकर्षण का और प्रेम करने की इच्छा का होना। इस समस्या का मुख्य कारण है, वर्तमान समय में पश्चिम की अश्लील संस्कृति का प्रभाव, अश्लील फिल्में या वैसी फिल्में जिनमें प्रेम के दृश्यों का प्रदर्शन काफी जोर-शोर से किया जाता है, प्रदूषित एवं राजसी और तामसिक भोजन ग्रहण करना, सह-शिक्षा, लड़कियों में अत्यधिक सुंदर दिखने की प्रवृत्ति और लड़कों में लड़कियों को रिझाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाना, जैसे-वर्ग में इंटेलीजेंट बनना, हीरो बनना, मोटरसाईकिल को तेज चलाना इत्यादि।
क्या करें :-
       जब ऐसा लगे कि इस ऊम्र के बच्चे ऐसी समस्या से ग्रसित हो गए हैं, तो उनका मजाक कभी मत उड़ायें और न ही मार-पीट करें। उनकी बातों को गंभीरता पूर्वक सुनें और सही क्या है, क्या नहीं, इसके बारे में जानें। अगर आपके बच्चे सिर्फ बातचीत तक सीमित हैं, तो कभी भी उनसे आगे क्या हो सकता है, यह चर्चा न करें या जैसा आवश्यक समझें वैसा करें।
       अगर यह समस्या उत्पन्न हो गई है, तो अपने बच्चों को भली-भाँति समझाएँ। उनकी चर्चा अपने नाते-रिश्तेदारों या पास-पड़ोस में कभी न करें। बच्चों को प्यार से वास्तविकता समझाएं कि इस रिश्ते की बुनियाद क्या है। बच्चों के साथ ऐसी परिस्थिति में कभी भी डाँट-फटकार या मारपीट न करें। अगर बच्चे ज्यादा जिद्दी हों, तो दोनों पक्षों को सुनें और सामने बैठ कर समझाएं। ऐसी स्थिति में इस प्रकार के सवाल करें -
1.    आपका नाम क्या है? आपके पिता जी क्या करते हैं? इस प्रकार से  परिचय प्राप्त करें।
2.    आप दोनों चाहते क्या हैं?
3.    यह प्रेम क्या है?
4.    भविष्य की क्या योजना है? पढ़-लिख कर आप क्या बनना चाहेंगे?
5.    आखिर आपलोग प्रेम अपने पिताजी की कमाई पर करेंगे?
इत्यादि इस प्रकार के कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जो बच्चों को निरूत्तर कर सकते हैं और उन्हें कुछ सोचने को विवश कर देते हैं।
विवहितों का प्रेम :- अगर दो कुँवारों का प्रेम है, तो बात कुछ चल भी सकती है। लेकिन अगर यही प्रेम विवाहित व्यक्तियों का हो, तो यह घातक सिद्ध होता है। प्रेम करने वालों में कोई एक विवाहित हो या दोनों ही विवाहित हों, तो दोनों परिवार बिखर जाते हैं। स्त्रियाँ शुरू से ही भावुक होती हैं और परिवार की धुरी भी उन्हीं पर टिकी होती है। किसी बच्चे को बाप से ज्यादा माँ के प्यार की जरूरत होती है। इसलिए पुराने ग्रंथों एवं धार्मिक ग्रंथों में स्त्रियों को पतिव्रता होने की सलाह दी गयी है। अर्थात् वे अपने पति के अलावे किसी गैर मर्द का सपने में भी ख्याल न करें और यह नियम पुरुषों के लिए भी है कि वे भूल कर भी पर स्त्रियों का चिंतन न करें। लेकिन आज के अल्पज्ञानी विद्वान इसे स्त्रियों की परतंत्रता की बात कह कर उन्हें भ्रष्ट करने पर तुले हैं। कहा जाता है कि पुरुषों को सभी प्रकार की स्वतंत्रता प्राप्त है। यह गलत है। अगर इसमें कोई विद्रोह कर बैठे तो यह उस व्यक्ति की गलती है, न कि कानून-व्यवस्था बनाने वालों का। रही बात यह कि पुरुष विधुर होर जब दूसरी शादी करे, तो कोई आपत्ति नहीं, उसके लिए विधुरता की कोई निशानी नहीं। यह बात विचारणीय है कि प्राचीन समय में ऐसा क्यों नहीं किया गया। अगर स्त्रियाँ बच्चे की माँ रहे और वह विधवा हो जाए और सजी-संवरी रहे, तो कोई भी पुरुष उसकी ओर आकर्षित हो सकता है और स्त्रियाँ शुरू से ही भावुक होती है और समय उन्हें और भी भावुक बना देता है। ऐसी परिस्थिति में वे अगर किसी दूसरे पुरुष के संग हो जाती हैं, तो उनके बच्चे अनाथ हो जाएंगे। लेकिन ऐसी परिस्थिति पुरुषों के साथ नहीं है, क्योंकि दूसरी शादी कर के वे किसी लड़की को अपने घर लाते हैं, न कि स्वयं कहीं चले जाते हैं। ऐसी स्थिति में उनके बच्चे कम-से-कम अनाथ होने से तो बच जाते हैं।
       बच्चों के बाद वैधव्य का भार महिलाओं की परतंत्रता नहीं, बल्कि उनके सुख का, उनके बच्चों के सुख का आधार है।
लड़कियाँ कैसे लड़कों को चाहती हैं?
       जैसा कि आज का दौर चल रहा है कि हर किशोरवय के लड़के अपनी हमऊम्र लड़की को आकर्षित करना चाहते हैं। लड़के तरह-तरह के हाव-भाव को अपना कर लड़कियों को तरह-तरह से रिझाने की कोशिश करते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या हर लड़के अपनी इस कोशिश में कामयाब रहते हैं? या लड़कियाँ कैसे लड़कों को चाहती हैं?
       कुछ लड़के-लड़कियों को रिझाने के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाते हैं, जैसे-उनके इर्द-गिर्द चक्कर लगाना, जहाँ-तहाँ उनका पीछा करना, सीटी बजाना, उनकी तरफ अश्लील इशारे करना इत्यादि।
       क्या इस प्रकार से लड़के यह समझ लेते हैं कि इस तरह की हरकतें करने से लड़कियाँ उनसे प्रेम करने लगेंगी? इस तरह के लड़कों का उद्देश्य प्रेम करना नहीं, बल्कि केवल छिछोरी हरकतें करना अथवा शरीर भोगना होता है। कुछ लड़के पुस्तकों के लेन-देन, उपहार इत्यादि देकर यह सिद्ध करना चाहते हैं कि वे उनसे प्रेम करते हैं। तो कुछ लड़के गंभीर हाव-भाव दिखलाकर यह दिखाने की कोषिष करते हैं कि उनको लड़कियों की कोई फिक्र नहीं है और यह सोचते हैं कि लड़कियाँ उनकी तरफ आकर्षित होंगी।
       कुछ बहुत ज्यादा आस्तिक तो कुछ नास्तिक बन कर भी लड़कियों को रिझाने की कोशिश करते हैं।
       लेकिन क्या लड़कियाँ इस प्रकार से पटती हैं?
       नहीं, वास्तव में लड़कियाँ इस तरह की हरकतें करने से एकदम से प्यार नहीं करने लगती हैं। लड़कियाँ जिस प्रकार के लड़के को पसंद करती हैं, देखें-
       वह लड़का किसी प्रकार की छिछोरी हरकतें न करता हो, जैसे-लड़कियों को देख कर सीटी बजाना अश्लील इशारे करना इत्यादि।
       वह लड़का साधारण हृष्ट-पुष्ट शरीर वाला हो, न कि बिल्कुल पहलवान या बिल्कुल कमजोर अथवा लिक-लिक सींकिया पहलवान।
       संगीत, कला इत्यादि का प्रेमी हो।
       पढ़ने-लिखने में तेज रहे।
       अपने किए गए वादों को निभाना जाने तथा अपनी जिम्मेवारियों को समझे।
       हिम्मती तथा बुद्धिमान हो।
       न ही नास्तिक हो और न ही पंडे-पुजारियों एवं अन्य अन्धविश्वासो में पड़ने वाला हो।
       किसी लड़के को खूब बातुनी या बिल्कुल गंभीर भी नहीं होना चाहिए। बल्कि उसे हँसमुख और बहुमुखी प्रतिभा वाला व्यक्ति होना चाहिए।
       वैसे तो आकर्षण किसी को भी किसी पर बहुत से कारणों से हो सकता है। लेकिन इन खूबियों को अपनाकर ही कोई लड़का किसी लड़की का विश्वास जीतने में सफल हो सकता है।

 Image may contain: 2 people, text

 परम पूज्य गुरुदेव श्री अरविन्द सिंह जी और माता साधना जी
 
       सामने वाले महबूब का दिल जीतने का सबसे आसान तरीका यह है कि आप यह जानें कि वह चाहता क्या है, वह किन बातों को पसंद करती है? उसकी कमजोरी क्या है? आप अपनी कमजोरियों को छिपायें। उसके विपरीत परिस्थितियों में आप किस प्रकार से उसके मददगार साबित हो सकते हैं? लेकिन एक बात यह भी याद रखें कि पार्टनर और लाईफ टाइम पार्टनर में बहुत अंतर होता है। यह कोई जरूरी नहीं कि कोई लड़की किसी लड़के से अपना काम निकलवाने के लिए अगर इस समय अफेयर का नाटक कर रही है, अथवा दोस्ती तक सीमित है तो उसे लाईफ टाइम पार्टनर भी बनाने के लिए भी प्रतिबद्ध हो। समय के साथ दोस्त और दोस्ती बदलती रहती है।
प्रेम से लाभ या हानि :- वास्तव में अगर हम देखें, तो वर्तमान में प्रेम का जो दौर चला है, वह लाभप्रद न होकर हानिकारक ही ज्यादा लगता है। यह प्रेम मात्र एक आकर्षण होता है और वासना पर आधारित होता है। और आकर्षण को टूटते ज्यादा देर नहीं लगती है।
       वासना पर आधारित होने के कारण यह नरक का द्वार खोलती है। (यहाँ नरक का द्वारा खोलने का तात्पर्य है, बर्बादी होना)।
       वर्तमान में अगर प्रेम स्वजाति और समान आय वाले से हो, तो किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता। लेकिन अन्य जाति, धर्म या असमान आय वाले से विवाह होने पर यह ज्यादा दिन तक टीक नहीं पाता। कभी-कभी लोग विवाह के पूर्व भी संबंध स्थापित कर लेते हैं, जो दुःखदायी हो जाता है। इससे नाजायज बच्चे पैदा होते हैं, जो किसी की वासना की उपज होते हैं। जिन्हें अपना कहने वाला कोई नहीं होता और समाज इन्हें कलंक मानता है।

 
 एक आधुनिक प्रेमी जोड़ा
       अगर प्रेम करना चाहिए तो अपनी जाति या नहीं तो समान आय वाले जरूर होने चाहिए। मनुष्य प्रेम में जात-पात, धर्म इत्यादि के दीवार को तो दूर करता है, लेकिन अधिकतर प्रेम विवाह टूटने का कारण आय एवं विचारों की असमानता ही होती है। अतः इसमें समानता होनी चाहिए।
       प्रेम करने का एक बहुत बड़ा फायदा यह है कि इससे जाति, धर्म, दहेज इत्यादि की संकीर्णता कम होती जाती है।
       इस प्रकार प्रेम सब मायने में ठीक है, क्योंकि इसे विद्वानों ने ईश्वर की कृपा, खुदा का रहमोकरम, तथा God Gift भी कहा है। किंतु इसमें वासना तथा आय की असमानता का अभाव होना चाहिए, अर्थात् ये दोनों चीजें न हो, तो अच्छा है और प्रेम जीवन के अंतिम क्षण तक टिक सकता है।
पति और प्रेमी में कुछ अंतर :- कुछ स्त्रियों का विचार है कि एक प्रेमी, पति हो सकता है, किंतु एक पति प्रेमी नही हो सकता है। तो आइए हम देखते हैं कि इनके विचार में एक पति और प्रेमी में क्या अंतर हो सकता है।         
पति
प्रेमी
अधिकांश पति उनकी पत्नीयो के गले मढ़ दिए जाते हैं।
लेकिन प्रेमी उनके सपनों का राजकुमार होता है।

किसी स्त्री का पति संसार का सबसे मूर्ख व्यक्ति होता है।
लेकिन प्रेमी बहुत-ही बुद्धिमान होता है और हर जगह बाजी मार लेता है।

एक पति बहुत-ही कमजोर व्यक्ति होता है।
लेकिन प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए किसी सुपरमैन से कम नहीं होते।

कोई पति अपने या पत्नी के बचाव के लिए किसी से लड़ने के पहले पूरी बात समझ लेना आवष्यक समझता है।
लेकिन प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए बात-बात पर जान देने को तैयार रहते हैं।

एक पति अपने पत्नी को घर में रखता है।
किंतु प्रेमी अपनी प्रेमिका को अपने दिल में बसा के रखता है।

एक पति कमाते-कमाते अपनी हड्डियाँ तक तोड़ लेता है।
लेकिन प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए चाँद-सितारे तोड़ कर लाते हैं।


                                  रचयिता लेखक - अभिषेक कुमार
समय - वर्ष 1996( मैट्रिक की परीक्षा देने के उपरांत (छुट्टी के समय में)

Image may contain: 5 people, people sitting and baby

श्री अभिषेक जी और उनकी धर्म पत्नी श्रीमती शोभा जी की गोद में उनकी पुत्री ख़ुशी रानी : पूर्ण समर्पित निश्छल आनंदित महाप्रेम

 

Post a Comment

0 Comments